आया बसंत

आती है जब बसन्त ऋतु चटकती हैं कलियां, फूलों पे निखार आ जाता है ।
महक उठती हैं हवाए , चमन में भी बहार का समाँ सा बँध जाता है ।
खेतों में लहलहाया धान, शाखों पे भी नये पत्तों का आया खूमार
किसानों का मन हर्षाया , कोयल ने अम्बुआ की डाली पे मधुर गीत सुनाया ।
दिलों को छुता मस्त पवन का झोंका, धूप में निखर जाए रँग बदन का ।
महके देखो कली - कली , भँवरों पे भी मस्ती आई , ठँड से सुखी धरती
पे प्राकृति ने हरियाली की चादर औढ़ाई ।
घिर आती जब घटा काली, कोयल भी हो जाती मतवाली
पपीहा भी देखो शोर मचाए , सुन्दर नाच मोर दिखाए ।
आया देखो मधुमास , गोरी को लगी पिया मिलन की आस ।
पतझड़ को नया जीवन मिला है, प्राकृति के अधरों पे फूल खिला है ।
प्रकृति का उपहार बसन्त , हरियाली की ओढ़ा के चुनरिया धरती को सजाती बसन्त ।
आया बसन्त ........आया बसन्त ......
मौलिक एवं स्वरचित
प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)
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