बाबुल न भेजो अभी पिया घर मुझे

बाबुल न भेजो मुझे अभी पिया घर,
कुछ अरमान मेरे भी दिल में दबे हैं।
ख़्वाहिशें तो अनगिनत हैं मेरे,
पर पूरे करने कुछ ख़्वाब सुनहरे हैं।
कुछ मोहलत दे दो मुझे बाबुल,
ख़ुद की पहचान बनाने को।
ताकि जब विषम परिस्थितियाँ आए,
तो आए न नौबत हाथ फैलाने को।
मैं जानती हूँ कि तुम्हें समाज के लोगों के तंज सहने पड़ेंगे,
लोग रिश्तेदार भी उठाएंगे सौ सवाल,
पर वादा है मेरा ये, तुम फ़क्र करोगे मुझपर एक दिन,
बस थोड़ी सी मोहलत मुझे दे दो फिलहाल।
बस थोड़ी सी मोहलत मुझे दे दो फिलहाल।
बाबुल मैं एक दिन बन कर दिखाऊँगी तुम सबकी ढाल!
#मेरा विषय-मेरी कविता
What's Your Reaction?






