बचपन का वो ज़माना

आज फिर एक बार याद आ गया मुझे बचपन का वो ज़माना , डैडी के साथ मिलकर हँसना-हँसाना ,
थक-हार कर घर पहुँचे डैडी से हमारा लिपट जाना और डैडी का हँस-हँसकर चाँद बेटा कहकर बुलाना ।
कहते डैडी तूने तो हँस कर मिटा दी थकान सारी , मुझे भी लगता है,मैं ही हूँ बस डैडी की प्यारी राजकुमारी
थोड़ी ही देर में मेरा अपनी असलियत पर आ जाना , हाथ पकड़कर डैडी का कुल्फी लच्छे के लिए जाना ,
डैडी का वह पुराना पर प्यारा सा साइकिल , साथ में हमारा उछलते-कूदते हुए जाना ,
दीवारों पर लिखे लेख पढ़कर ज़ोर-जोर चिल्लाना , ऊँची इमारतों की जैसे छत को ही छू जाना,
पहुँच कर रेहड़ी पर उसकी मालकिन ही बन जाना, खाना- पीना साथ में कुछ घर भी ले आना ,
आज फिर एक बार याद आ गया मुझे बचपन का ज़माना……….
सीढ़ियों से उतरें हम तो डैडी का रोशनदान पर लटकवाना , कद बढ़ जाए मेरा ऐसे नुस्खे बताना ,
शाम को डैडी का किस्से और कहानियां सुनाना , फिल्म खत्म हो तो शिक्षा क्या मिली पूछना और समझाना ,
रोज अपने बस सफ़र की घटनाएँ सुनाना, लड़कों को शरारत पर धमकाना और लड़कियों को सीट दिलवाना, कोई कह दे अपना दुख तो हर संभव मदद कर जाना ,जब तक निकले न हल उसके साथ ही जुड़े रहना ।
आज फिर एक बार याद आ गया मुझे बचपन का वो ज़माना
गलत बात कर जाए कोई कमी ना चुपचाप सहना , जरूरत पड़े तो हमारे टीचर्स को भी खरी-खरी सुनाना,
बातों बातों में प्रश्न पूछ लेना और सब का हाल सममझना, पढ़ते रहने को भी बच्चों के लिए पूजा बताना ,
हर रोज नई नई पहेलियाँ बुझाना , डैडी का रूप से रहने के सलीके सिखाना ,
तकलीफें खुद सहकर भी हमारे अच्छे भविष्य की नींव बनाना ।
आज फिर एक बार याद आ गया मुझे बचपन का ज़माना बचपन का वो ज़माना।
Madhu Dhiman
Pink Columnist - Haryana
#Myfathermyhero
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