बचपन की राखी, बहुत है याद आती।

"बचपन"दुनियादारी से परे, जीवन चक्र का एक सबसे सुखद तथा सुंदर समय होता है। हृदय में निश्छल प्रेम लहराता है। हर एक में हमें अपना ही कोई नज़र आता है।
बचपन और भाई- बहन का साथ इस समय अवधि को और भी सुंदर बना देते हैं। चंचलता और मिठास से भरा हुआ बचपन और भाई -बहनों के साथ की गई मस्ती को हर एक व्यक्ति अपने हृदय में जीवन पर्यंत तक संभाल के रखता है।
आज के युग में काफी कुछ बदल गया है, परिवर्तन जीवन का चक्र है और हमें इसे खुले दिल से अपनाना भी चाहिए, पर बहुत कुछ चीजों की मौलिकता में भी परिवर्तन आया है जिसे अपनाने में मन कुछ व्यथित होता है। इसी श्रेणी में बचपन की राखी बहुत याद आती है।
सावन का पूरा महीना तीज-त्योहारों से सजा रहता है और सावन मास की पूर्णिमा के दिन हम भाई बहन का त्यौहार यानी कि राखी धूमधाम से बना कर सावन को अलविदा करते हैं। आधुनिकता के युग में हर एक व्यक्ति अपने आप में इतना व्यस्त है कि अब हमें त्यौहारों को बनाने के लिए भी समय बहुत कम मिल पाता है। अपनी व्यस्तता के कारण कई बार भाई -बहन इस राखी पर्व पर भी नहीं मिल पाते। पर भाई बहनों का प्यार दूरियों को भी कम कर देता है।
बचपन में राखी के त्यौहार की आने की खुशी में ही कई दिनों पहले से ही, हम लोग झूमने लगते थे। घर में दादी ,चाची ,मम्मी आदि लोग राखी के उपलक्ष्य पर कई तरह की मिठाइयां बनानी शुरू कर देती थी, बच्चों के नए कपड़े, राखी बांधने आने वाली बुआ, दीदी के लिए उपहारों को तैयार करने लगते।
घर में एक वैवाहिक समारोह का जैसा वातावरण बन जाता।
मैं और मेरे दो भाई तथा चाचा- ताऊ के बच्चे सब मिलकर राखी का त्यौहार बड़े ही हर्ष उल्लास से मनाते थे। वह पल अब बहुत याद आते हैं।
राखी से पहले मम्मी -चाची हम बहनोंके हाथों में मेहंदी लगाती, नए -नए कपड़े पहन हम लोग तैयार होते, पूजा अर्चना कर भाइयों को राखी बांधते ।
मेरे सबसे बड़े भाई हॉस्टल में रहते थे और राखी की छुट्टी में जब भी घर आते तो मेरे लिए अपनी पॉकेट मनी से कोई ना कोई गिफ्ट अवश्य लाते, और मैं वह उपहार पाकर बलिहारी जाती। आज वह मुझे कई उपहार देते हैं पर वह बचपन के दिये गए उपहार का कोई मूल्य नहीं। बचपन से ही बड़े भाई हम दोनों छोटे भाई बहनों के लिए बहुत केयरिंग रहे हैं। आज हम तीनो भाई बहन एक दूसरे से काफी दूर रहते हैं लेकिन हमारी तीनों के बीच एक ऐसा रिश्ता है कि अगर कोई भी जरा सा भी परेशान होता है हम तीनों का इसका आभास हो जाता है। शायद यह सभी भाई बहनों के साथ ऐसा होता है।
मेरे दूसरे भाई बचपन में बहुत चंचल प्रवृत्ति के रहें।
उनकी और मेरे बीच हर एक छोटी सी बात पर बहस जरूर होती थी। पर राखी वाले दिन वह भी मेरे लिए अपनी पॉकेट मनी से गिफ्ट जरूर लाते थे। बचपन में चाचा -ताऊ के बच्चों को राखी बांधने के लिए मम्मी मुझे मेरे दूसरे भाई के साथ राखी बंधवाने भेजती और उन्हें हिदायत देती कि मुझे बड़े प्यार से ले जाकर सब भाइयों को राखी बंधवा दे। हम सबके घर कुछ-कुछ दूरी में होने के कारण भाई हमेशा मेरे साथ दूसरे भाइयों को राखी बांधने ले जाते , रास्ते भर मेरी राखी की थाली को संभालते और साथ ही कभी मेरे बालों की क्लिप ठीक करते हैं तो कभी मेरे लहंगे को, तो कभी मेरी चुनरी को। मैं भी एक राजकुमारी की तरह उनसे बर्ताव करती।
राखी बांधने के बाद मिले उपहार हम दोनों भाई बहन रास्ते में आधे-आधे बांट लेते, बचपन में पैसों के बारे में जानकारी कम होने के कारण मेरा भाई मुझे एक टिक टॉक कैंडी का डिब्बा दिला देते और कहते तुम्हारे पैसे खत्म हो गए। और सारे पैसे अपने पास रख लेते। जब घर जाकर मम्मी उनसे मेरे उपहारों के बारे में पूछती तो बड़े ही प्यार से कहते इसको ले जाने और लाने का टैक्स मैंने ले लिया है। मम्मी की डांट से बचने के लिए थोड़ा आनाकानी करने के बाद भैया सारे पैसे मम्मी को दे देते और कहते इसको ले जाने और लाने का टैक्स तो दे दो। फिर मम्मी हम दोनों के गुल्लक में पैसे डाल देती। गुस्से में आकर भैया मुझे दिखते हुए कहते थे कि अगली बार से तुम अकेले ही जाना मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा। पर अगले साल मुझे फिर बड़े प्यार से सभी भाइयों के घर ले जाते।
आज कई सालों से भाई की व्यस्तता के कारण कारण हम लोग राखी पर नहीं मिल पाते । अतः हर साल में उन्हें राखी पोस्ट कर देती हूं। बचपन की यह खट्टी मीठी यादें हर राखी वाले दिन बहुत याद आती हैं। हर साल राखी वाले दिन भाइयों के अच्छे भविष्य व स्वास्थ्य की कामना कर, यही आशा करती हूं कि अगले साल उनसे मिलकर उनकी कलाई में राखी अवश्य बांधोगी।
#भाई और मेरा बचपन
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