बारिश की बूँदें

सज धज कर झरोखे पर नजरें गड़ाए
रस्ता देखती बिना पलकें झपकाए
बादलों की आहट सुन
मन ये सोच विचलित हो जाए
आज के दिन, कहीं बारिश न हो जाए
मेरे मन का डर , भाँप गई वो जैसे
बरसी जो आज , उमड़ते सैलाब के जैसे
छटने लगी जब बूंदे बदरा से,
सहमा हुआ मेरा मन, हर्षाया
एक ख्याल मन में आया
क्या मैंने कभी कढ़ाई में, खाना था खाया?
सौंधी महक संग लिये
सहेजे,इस बरसात की बूँदें, एक बोतल में,
बढ़ने लगी मैं नव जीवन का हाथ थामें,
छिड़का करूँगी ये बूंदें ,
जब भी घिरूँगी निराशा के घेरे में।
सुषमा त्रिपाठी
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