एक बार तो कुछ बोला होता

कुछ लोग अपने भाव खुलकर नहीं ज़ाहिर करते तकलीफ़ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो अपनी हंसी के पीछे अपने दर्द को छुपा लेते हैं कई बार वजह बहुत होती है कभी कोई सुनने वाला नहीं होता तो कभी हम सुनाना नहीं चाहते परिणाम एक ज्वार भाटा जो हमारे अंदर बन जाता है वह कभी ना कभी तो किसी ना किसी रूप में फटता ही है
खड़ी है जो हिम्मत से वह हर बार
जिसके चेहरे पर ना
उदासी का नामोनिशान
पाया है उसने हिम्मती साहसी का तमगा
खिलखिलाती है वह होकर बेपरवाह
उसकी इस हंसी में कुछ तो है छुपा
क्या तुमने कभी उसे है सुना
एक चुप लगाया है उसने अपने ही अंदर
ताकि ना देख पाए कोई उसके दुख का समुंदर
समझ गई वह दुनिया की ये रीत सुख में सब साथ हैं
दुख का ना कोई मीत
बैठाया है चुप्पी का पहरा
ताकि ना दिख जाए मन का घोर अंधेरा
इस चुप्पी ने लेकिन देखो क्या है किया
मौत के आगोश में ला खड़ा किया
काश! कोई उसे सुनने वाला होता
मैं हूं ना बस यह कहने वाला होता
काश!तुमने भी तो चुप्पी को तोड़ा होता
एक बार तो मन की गिरह को खोला होता
एक बार तो कुछ बोला होता
अनु गुप्ता
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