फिल्म चांदनी बार

बीते दशकों से औरत की मजबूरी का फायदा हमेशा इस जमाने ने उठाया है। कभी रेप ,कभी मानसिक शोषण ,कभी जाति -पाति ,तो कभी शारीरिक यातनाएं। और तो और देह व्यापार भी इसमें शामिल है।
औरत की इन्हीं में से एक मजबूरी को दर्शाती फिल्म चांदनी बार के बारे में आज मैं लिख रही हूं। फिल्म चांदनी बार में तब्बू ने मुख्य नायिका की भूमिका निभाई है ।संपूर्ण फिल्म उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है।
पूरी फिल्म आपकाे दिल को रुला देने वाली है। तब्बू का नाम फिल्म में मुमताज है। मुमताज के मामा तब्बू को अपने साथ मुंबई ले आते हैं और चांदनी बार में नौकरी पर लगा देते हैं। खुद कोई नौकरी नहीं करना चाहते और उसकी सारी कमाई जुए,शराब पर उड़ा देते हैं। मुमताज को वहां नाचना -गाना ,कतई रास नहीं आता है। मामा से लाख मना करने पर भी वह नहीं मानता। कहता है- हम भूखे मर जाएंगे ।इस खोली का मालिक हमें यहां से बाहर कर देगा ।धीरे-धीरे मुमताज वहां दीपा, पुष्पा, रानी ,शब्बो आदि के साथ मन लगाने का प्रयास करती है ।खासकर दीपा उसका विशेष सहारा बनती है।
वो उसे ग्राहक पटाना, नोट झटकना ,नैनों के तीर चलाना, अदाएं दिखाना, लटके झटके दिखाना ,थोड़ा अंग प्रदर्शन करना, नाचना गाना सब सिखाती है। 1 दिन मुमताज की आत्मा घायल हो जाती है, जब उसका मामा ही अपनी शारीरिक भूख शांत करने के लिए उसे अपना जरिया बना लेता है।
तब उसका मामा के साथ रहना बहुत मुश्किल हो जाता है ।तब दीपा उसे समझाती है ,कहां रहेगी ?सब गिद्ध की तरह नोच -नोच कर खा जाएंगे। तुम अकेली नहीं हो इस प्रताड़ना की शिकार ,देखो यह शब्बो, इसके माता-पिता ने तो चांदनी बार में ही कन्यादान कर दिया और छोड़ दिया , रोज नए दूल्हे के साथ सुहागरात मनाने को ।और यह रानी सुहाग सेज पर पति का इंतजार कर रही थी, इसके हरामी पति ने अपने दोस्त को ही एक रात के लिए 25000 रुपए में बेच दिया। और मेरा तो पति ही मेरा दल्ला है।
फिर मुमताज का चाहने वाला ग्राहक उससे शादी कर लेता है और वह दो बच्चों की मां भी बन जाती है। किंतु 3 साल बाद खोटिया यानी मुमताज के पति की एनकाउंटर में मौत हो जाती है। वह बहुत बड़ा गैंगस्टर था ।मजबूरी में मुमताज को चांदनी बार का दरवाजा फिर से खटखटाना पड़ा ।जहां से वह कमाई करके अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहती थी ,किंतु उसका बेटा गलत दोस्तों की संगति के कारण जेल गया और उसकी जमानत के लिए मुमताज को फिर एक रात अपना शरीर बेचकर पैसे इकट्ठे करने पड़े।
किंतु वह चाहकर भी अभय को ना रोक सकी। उसने भी अपने बाप की ही तरह अंडरवर्ल्ड में कदम रख लिया।
इस फिल्म के द्वारा में यह संदेश देना चाहती हूं कि वेश्यावृत्ति, बार में नाचना गाना ,कोठे पर नाचना ,शरीर बेचना आदि,ऐसा कोई भी काम, कोई भी औरत अपनी मर्जी से नहीं करती। सामाजिक और घरेलू भेड़िए ही उसे ऐसा करने पर मजबूर कर देते हैं।
पारुल हर्ष बंसल
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