गोलगप्पे सा मुँह

गोलगप्पे सा मुँह

गोलगप्पे सा मुँह

बचपन की शैतानी दादी नानी के घर की छुट्टियाँ और कॉलेज की ज़िंदगी कभी भी नही भुला पाते हैं।इतनी सारी यादें जुड़ी रहती हैं औरआज भी गुदगुदाती हैं।

मैं बचपन से ही नटखट चुलबुली रही हूँ और मुझे मीठे का बहुत शौक़ है।अगर कहीं भी मीठा मिल जाता था तो तुरंत उठा के खा लेती थीऔर अपनी पाकेट मनी भी मीठा खाने के लिए जोड़ती रहती थी।क्यूँ कि कुछ ज़्यादा ही मीठा खाती थी तो ज़्यादा मीठा बच्चों के लिएअच्छा नही होता वैसे तो किसी के लिए भी ज़्यादा मीठा अच्छा नही।तो घरवाले मेरी पहुँच से दूर ही मिठाई रखते थे।

जब मैं चार साल की थी तो मेरे से छोटे भाई का जन्मदिन था पहले जन्मदिन पर केक मिल्क केक का बनता था तो खूब बड़ा सा केकबना था जब पार्टी ख़त्म हुई तो केक बच गया मेरी निगाह में बहुत अच्छा हुआ था क्यूँ कि अब केक घर में ही बाँटा जायेगा।बाँटा तो केकमाँ ने पर मेरे लिए वो थोड़ा कम लग रहा था।अब कब और कहाँ माँ उस केक को रखने जाएँगी इसलिए उनके पल्लू से बंधी बंधी मैंनाचती रही साथ में।

अब मुझे आराम था की माँ ने केक मेरे सामने ही लकड़ी की अलमारी में रखा उस वक़्त हमारे घर फ़्रिज नही था कमही घरों में फ़्रिज हुआ करता था अब रात में नींद नही आए की कैसे मैं केक खाऊँ।नींद तो गयी फिर सुबह उठते ही फिर से केक कीधुन लगी हुई थी पर माँ ने बोला पहले स्कूल जाओ वापस आने पर मिलेगा।मन बेमन से स्कूल तो गये पर वापस आते हुए बहुत ख़ुशी होरही थी की केक मिलेगा घर पहुँच के फिर केक की धुन माँ ने फिर बोला पहले खाना खा के सो जाओ शाम को मिलेगा केक।पर अबबहुत हो गया रात से इंतेज़ार था अब तक हाथ नही लगा केक।अब नही सोना था माँ सो गयीं और दीदी भाई भी बस मैं ही जागती रहीक्यूँ कि केक खाना था।

अब मैं चुपके से उठी और अलमारी खोल के आव देखा ना ताव सीधा केक पर टूट पड़ी जितना खा सकती थी खाया ,फिर के मैं भी सो गयी।शाम को जब सो के उठी तो पता नहीं ऐसा लगा के कुछ मुँह भारी सा हो रहा है माँ को बताया तो माँ तो घबरा गयीं मेरा मुँह देख कर मेरे होंठ पूरे सूजे हुए थे और चेहरा भी भारी हो गया था।अब मेरी माँ मुझे पूछ रही स्कूल में किसी ने मारा क्या?स्कूल में किसी ने कुछ खाने को दिया?पर ऐसा कुछ था नही माँ डाँटने लगी तो मैंने बताया की मैंने केक खाया फिर उन्होंने अलमारी खोल के केक देखा तो उसमें बहुत छोटी छोटी सी लाल वाली चींटी हो गयीं थीं मेरे पापा भी ऑफ़िस से गये थे अब पूरा घर मेरा गोलगप्पे जैसा चेहरा देख के हंस रहे थे और माँ पापा को चिंता भी हो रही थी फिर पापा मुझे डॉक्टर के पास ले कर गये डॉक्टरअंकल को बताया तो वो भी हंसी नही रोक पाये।

इतना सब कुछ हुआ पर मेरा मीठे का जुनून कम नहीं हुआ आज तक।और भी बहुत क़िस्से हैं बचपन की शैतानियों के दुबारा कभी मौक़ामिला तो फिर आपके सामने पिटारा खोलूँगी अपनी यादों का धन्यवाद

#यादोंकापिटारा

स्वरचित एवं मौलिक

दीप्ति

#यादोंकापिटारा

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