खतरे में कतई नहीं मेरी हिंदी का अस्तित्व

आज हिंदी दिवस के सुअवसर पर
क्यों उदास-मायूस-कमज़ोर लग रही है हिंदी
डरी-सहमी-घबराई सी यूँ बनकर
क्यों अस्तित्व अपना खतरे में बता रही है हिंदी
अपने इस घर - आँगन में भी
क्यों स्वयं को पराया बता रही है हिंदी
संस्कृत की लाडली बेटी होकर भी
क्यों स्वयं को लाचार बता रही है हिंदी
आधुनिकता से सजी अंग्रेज़ी के आगे
क्यों बूढ़ी और बीमार सी लग रही है हिंदी
यह हालत तो कभी भी नहीं है उसकी
मुझे सदैव शीर्ष पर नज़र आ रही है हिंदी
खतरे में कतई नहीं है अस्तित्व मेरी हिंदी का
सीमाएँ कर पार विदेशों में भी पहुँच रही है हिंदी
परिणाम ही है यह हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता का
कि विदेशी पाठ्यक्रम में भी पढ़ाई जा रही है हिंदी
मिठास और अपनापन ऐसा गजब है हिंदी का
सबसे अधिक सुना जाने वाला संगीत दे रही है हिंदी
हिंदी कंटेंट का उपयोग बढ़ रहा है खूब इंटरनेट पर
नेट में तो अंग्रेजी को पछाड़ती नजर आ रही है हिंदी
एक और पुख्ता सबूत है हिंदी उपयोग बढ़ने का
ई-पत्रिकाओं में वृद्धि कर नए लेखक खूब ला रही है हिंदी
मातृभाषाओं की संख्या दृष्टि से दूसरा स्थान है हिंदी का
भावी अग्रणी भाषा में स्वयं को स्थापित कर रही है हिंदी
वेब -सिनेमा-बाज़ार में बड़ी मांग पर है हिंदी
बॉलीवुड हिंदी फिल्मों का भी पर्याय बन रही है हिंदी
माना अंग्रेजी की चकाचौंध कुछ इस तरह बढ़ रही
पर विदेशी कंपनियां भी विज्ञापन भरपूर बना रही है हिंदी
कहीं किसी भी तरह नहीं पिछड़ रही है हिंदी
अंग्रेजी बोल कर लगते स्मार्ट- इसका मोल चुका रही है हिंदी
भाषा तो हर एक ही जल की तरह है बहती
आत्मविश्वास से बोले-यही अपना आधार बता रही है हिंदी
मेरी पहचान-मेरा गर्व-मेरा अभिमान-स्वाभिमान है हिंदी
कल थी-आज है-कल रहेगी,सदा से शीर्ष स्थान पर है हिंदी
मधु धीमान
पिंक कॉलमनिस्ट (हरियाणा)
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