कहाँ है समानता?

क्यों तुम मुझे
बातों से बहलाते हो ?
है तुम्हें भी समानता का अधिकार बस यह चिल्लाते हो
कहां है समानता ?
ढूंढ रही मैं आज भी समानता
माँ की कोख में
जब बेटी है कहकर
तुम मुझ पर
औजार चलवाते हो
कहाँ है समानता?
ढूंढ रही मैं समानता
मेरी परवरिश में
जब बाहर के काम भाई सेऔर
घर के काम मुझ से करवाते हो
इस रोक-टोक को
मेरी जिंदगी का हिस्सा बताते हो
कहां है समानता ?
ढूंढ रही मैं समानता
उन खुशियों में
जब लड़कों से मेरी दोस्ती पर भी तुम सवाल उठाते हो
भाई की लड़कियों से दोस्ती पर हंस कर टाल जाते हो
कहां है समानता ?
ढूंढ रही मैं समानता
बाबुल की नजरों में
मेरी शादी की बात पर
मेरी पसंद को ना
हजम कर पाते हो
भाई की कोर्ट मैरिज पर
लड़का है सोच कर
माफ कर जाते हो
कहां है समानता?
ढूंढ रही मैं समानता
सासरे के आंगन में
मेरे लिए पति को
परमेश्वर बताते हो
मुझे पति का हमसफर
भी ना समझ पाते हो
कहां है समानता?
ढूंढ रही मैं समानता
आजकल की शिक्षा में
ज्यादा काम ,समान शिक्षा में भी बराबर की सैलरी देने से
हिचकिचाते हो
काबिलियत होने पर भी
मेरे देर रात बाहर काम करने पर प्रश्न उठाते हो
नहीं चाहिए मुझे कानून की समानता
देना है तो समानता
मुझे अपने विचारों में दो
बना सको तो अपनी सोच को सामान बनाओ
जहां मैं खुलकर सांस ले सकूं
मेरे लिए एक ऐसा आसमान बनाओ
अनु गुप्ता
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