खुशबू तेरे खत वाली

वह खुशबू तेरे खत वाली,आती नहीं अब,
लोग कहते हैं,
ज़माना वॉट्सएप का है अब,
दो - चार बटन दबा कर,
बयां कर दिए जाते हैं अहसास,
और फोन कि मेमरी में कहीं दफ़न हो जाते हैं,
चिठ्ठियों को संभाल कर रखता नहीं कोई अब,
वह अहसास जो प्यार की स्याही से लिखे जाते थे,
नज़र आते नहीं कहीं अब,
वह खुशबू तेरे खत वाली,
आती नहीं अब।
कहते - कहते नीति की आंखें बेचैन सी हो गईं थीं, वह जल्द से जल्द अपने उन खतों को जी भर कर निहारना चाहती थी और फिर उन अक्षरों में घुले खुशबू को जी भर कर सूंघना चाहती थी। वह मात्र अक्षर नहीं थे, वह अहसास थे, वे अनमोल लम्हें थे जिन्हें शायद अपना सबकुछ दे कर भी नीति वापस जीना चाहती थी। " वाह! क्या खूब लिखा है आपने " किसी ने तारीफ की पर नीति ने ध्यान ही नहीं दिया, उसका मन तो उन खतों में अटका था। खैर, पार्टी खत्म हो गई थी, सब जा चुके थे। घर पर भी सब सो गए थे। नीति दबे पांव स्टोर रूम में पहुंची, ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, वहीं पड़ा था वह साधारण सा बॉक्स, जो नीति के लिए बेहद खास था। नीति ने बड़े प्यार से सहलाया जैसे कोई अनमोल खजाना बंद हो उस बॉक्स में, फिर धीरे से उसे खोला, काफी पुरानी, पीले पड़ गए कुछ कागज़ थे उस बक्से में। एक - एक करके सारे कागज़ खोलती, प्यार से उन्हें सहलाती, पढ़ती और फिर सहेज कर वापस रख देती।
" मुझे लग ही रहा था, यहीं होगी तुम।" आवाज़ सुन चौंक कर पलटी तो देखा मां खड़ी थी। " वह, मैं, बस ऐसे ही! " नीति की आवाज़ लड़खड़ा गई थी, गला रूंध गया था। मां पास आकर बैठ गईं थी। "मान क्यूं नहीं लेती, मेरी बात, क्यूं इन खतों को और खुद को सज़ा दे रही है। वह तेरी मां थी, उनकी अपनी खास जगह थी तेरी ज़िंदगी में, मेरी अलग जगह है। तूने आज तक मुझे उनकी जगह देने की कोशिश की है, जो उनके साथ नाइंसाफी है और तेरे खुद के साथ भी। बेटा जब तक आप अपने आप को किसी और की जगह रखने की कोशिश करते हो तब तक आपकी अपनी कोई जगह नहीं बन पाती और यही सच है। मेरे बच्चे मेरी एक अलग जगह है तेरी ज़िंदगी में और मुझे कभी अच्छा नहीं लगेगा कि तू अपनी मां की जगह मुझे दे दे। अब उठ! चल इन खतों को उनकी जगह दे दे।" मां कह रही थी और नीति की आंखों से अविरल अश्रु धारा बह रही थी। मां शायद ठीक कह रही थीं, हम किसी की भी जगह किसी को नहीं दे सकते, सोचती उस बक्से को अपने सीने से लगाए अपने कमरे में आ गई थी। आज इन खतों में, इन एहसासों के सहारे उसे सुकून कि नींद आने वाली थी और कहीं दूर से आवाज़ आ रही थी
" वह खुशबू तेरे खतों वाली,
आ रही है अब,
आ रही है अब।।"
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