कन्यादान क्यों

कन्यादान क्यों?
त्याग कर पिता बेटी को,
ये कैसी रस्म निभाता है!
दान देते हैं सब खुश हो,पिता
आंख से दरिया बहाता है।।
जिगर के टुकड़े को,
पिता प्यार से संभालता है।
कन्यादान कर वही,बेटी
को पराया धन बताता है?
कैसा भावुक है ये संस्कार ,
पिता के त्याग का होता इम्तिहान ।
कितना कठोर है ये समाज ,
समझता है बेटी को बस सामान ।
क्या उसपर नहीं होता अधिकार,
कर भी दिया है अगर दान!
तो क्या बेटी है बस सामान,
जो कर देते उसका कन्यादान?
दे देते हैं उसे नया संसार
तो खो देती है क्यों अधिकार!?
उसकी खुशियों और जीवन पर,
क्यों हो जाता औरों का अधिकार!?
कैसा है ये दुनिया का रिवाज़ ,जो
समझे ना बेटी का अपमान।
सहनशक्ति की लेता परीक्षा ,
कर देता बेटी का कन्यादान !
जब बेटा बेटी एक समान,
जब दोनों के अधिकार समान।
तो क्यों होता है बेटी का दान,
पिता क्यों करते कन्यादान?
क्या ये रस्म जरूरी है?
'स्वाति' यह रस्मअधूरी है?
कैसे हो सकती पिता से दूरी है?
तो फिर कन्यादान क्यों जरूरी है !?!
- स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक
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