क्यो पत्नी का काम पति की मार खाना है ?

क्यो घर के काम एक महिला की ही जिम्मेदारी मानी जाती है?
क्यो आज भी पुरुषो का एक वर्ग पत्नी के कामकाजी होने के बावजूद अपने लीये एक कप चाय या काॅफी बनाना भी अपनी शान के खिलाफ समझता है?
क्यो आज भी ये कहना पड़ता है कि पत्नी पर हाथ मत उठाओ?
इन्ही सब मुद्दो को उठाती है नन्दिता दास की ये शार्ट फिल्म
घरेलू हिंसा इन मामलों में लोग अक्सर विक्टिम पर हावी हो जाते हैं. उससे कहते हैं, अरे तुम अपने पति के खिलाफ जा रही हो।
घर की इज्ज़त बाहर लेकर जा रही हो,उस पर इतना दबाव डाल देते हैं कि वो डर जाती है. सोचती है मैं कुछ नहीं कहूंगी. मार खा लूंगी, लेकिन लोगों को या अपने मां-बाप को नहीं बताऊंगी कई बार लडकियो के माता पिता खुद कहते हैं कि चुपचाप सहो, और लोग भी सहते हैं, तो तुम भी सहो
नंदिता दास ने हाल ही में एक शॉर्ट फिल्म बनायी है ‘Listen to Her’. उनकी यह शॉर्ट फिल्म घरेलू हिंसा और उसके विभिन्न पहलुओं के बारे में है।
ये शॉर्ट फिल्म घरेलू हिंसा का वो चेहरा दिखाती है, जिस पर लोग बात नहीं करते
फिल्म में नंदिता का किरदार एक कामकाजी महिला का है. घर पर बैठी वो मीटिंग निपटा रही है। बीच-बीच में उसका बच्चा और उसका पति उसे परेशान करते हैं।
पति भी बैकग्राउंड में ऑफिस का काम निपटा रहा है, ऐसा दिखाया गया है. लेकिन रह-रहकर नंदिता को कुछ न कुछ काम करने को कहता रहता है. कभी कॉफ़ी बनाने को, तो कभी दरवाज़ा खोलने को. वो काम निपटाते हुए ये सारी चीज़ें भी करती जा रही हैं।
.फिल्म में घरेलू हिंसा का डराने वाला रूप तो दिखाया गया ही है, जो अक्सर ख़बरों में देखने और पढ़ने को मिलता है, लेकिन उसके अलावा एक हिंसा और है, जो चुपचाप झेली जाती है. जिस पर कोई बात नहीं करता।वो हिंसा जो इस फिल्म में नंदिता के किरदार के साथ हो रही है।
इसी बीच एक फोन आता है, जिस पर एक सिहरती हुई आवाज़ आती है. महिला किसी NGO की तलाश में फोन कर रही है. नंदिता रॉन्ग नंबर कहकर फोन काट देती हैं। वापस फोन आता है और उस तरफ से आई आवाज़ नंदिता को कंपाकर रख देती है।
पल-पल उस पर चीखता, हुक्म झाड़ता पति बैकग्राउंड में होते हुए भी कितना पावरफुल है, ये फिल्म देखते ही समझ आ जाता है।हिंसा सिर्फ शरीर नहीं झेलता यही इस फिल्म में दिखाया गया है।
पुलिस का रवैया भी कैसा है, ये कहने की ज़रूरत नहीं. आम तौर पर ऐसी शिकायतें अक्सर आती हैं कि घरेलू हिंसा के मामलों में पुलिस भी आपसी समझौते पर जोर देती है।
फिल्म का अंत एक ऐसी जगह होता है, जहां नंदिता का किरदार अपनी आवाज़ ढूंढने की कोशिश करता हुआ दिखाई देता है।
नंदिता दास कहती है कि आज के समय में भी हम इन्हीं चीजों से डील कर रहे हैं।जब औरतें स्पेस में जा रही हैं, तब हम इस पर अटके हुए हैं।
हमें आज भी कहना पड़ रहा है कि भई मत मारो अपनी औरतों को. कितने लोग हैं, जिन्होंने बताया कि उनके घर में काम करने वाली डोमेस्टिक हेल्प कह रही हैं कि उन्हें काम पर वापस आने दिया जाए. जब उनसे कहा गया कि लॉकडाउन है, मत आओ. तो उनका जवाब था कि उन्हें घर से बाहर निकलना है, क्योंकि उन्हें घर पर मार पड़ रही है।
यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए यह फिल्म उस स्थिति को भी दिखाती है जहां पति विशेष रूप से रूढ़िवादी होते हैं। और मानते है कि घर के काम केवल महिलाओं के ही हिस्से आते है।
अनु गुप्ता
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