एक बड़ा फैसला , विवाहित बेटियां भी होंगी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार

हमारे भारत में कई वर्षों से चला आ रहा है कि बेटियों के ब्याह के बाद उस घर से व पिता की संपत्ति से बेटियों का नाम काट दिया जाता है जिस आंगन में बेटियों का जन्म होता है वे हंसती खेलती है और बड़ी होती हैं पर विवाहोपरांत उसी घर में उनका कोई हक नहीं होता अर्थात् विवाह के बाद बेटियों का पारिवारिक संपत्ति से भी नाम काट दिया जाता है | यदि पिता की मृत्यु हो जाये तब अनुकंपा नियुक्ति पर बेटों का ही हक होता है तब सरकार उनका मैरिटल स्टेटस नहीं पूंछती लेकिन यदि बेटी विवाहित है तब उसे अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जाती थी पर अब सरकार ने बेटे व बेटी का भेद मिटाते हुए विवाहित बेटियों को भी अनुकंपा नियुक्ति का हकदार बनाया है इस निर्णय से सरकार ने बेटे व बेटियों को बराबरी का
आजादी के बाद बने भारत के संविधान भारतीय दंड संहिता के कानूनी धाराओं और सरकारी नियमों में भी काफी हद तक उस सांमती पारिवारिक ढांचे को ही बरकरार रखने तक का काम किया लेकिन 72 सालों में धीरे धीरे उन कानूनों को न सिर्फ चुनौती मिली बल्कि वो आधुनिक दुनिया के लोकतात्रिंक और बराबरी के मूल्यों के अनुसार बदले भी | कई बार अलग अलग मुकदमों पर कोर्ट ने फैसला सुनाया कि लड़का और लड़की एक बराबर हैं | और उनका हक भी बराबर है | बेटी की शादी कर देने का मतलब यह नहीं होता कि अब वो परिवार का हिस्सा नहीं रहीं | हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मुकदमें में फैसला सुनाते हुए कहा कि शादीशुदा (विवाहित ) बेटी भी पिता की मृत्यु के बाद उनकी जगह नौकरी पा सकती हैं | कोर्ट ने बैंगलुरू की रहने वाली भुवनेश्वरी वी. पुराणिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया |
जस्टिस एम नागपन्ना की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि "बेटी के शादीशुदा होंने का मतलब ये नहीं कि अब वो परिवार का हिस्सा नहीं रहीं | जस्टिस नागपन्ना ने और भी कई महत्वपूर्ण बातें कहीं जैसे :-
1, आधी दुनिया महिलाओं की आबादी है तो क्या उन्हें आधा मौका भी नहीं मिलना चाहिये |
2, पिता के स्थान पर नौकरी के दावे के लिये जब बेटे का मैरिटल स्टेटस नहीं पूंछा जाता तो फिर बेटी के मैरिटल स्टेटस से क्यों फर्क पड़ना चाहिये |
3, बेटा तो शादी के पहले और शादी के बाद भी बेटा बना रहता है तो बेटी भी शादी के पहले और शादी के बाद भी बेटी ही रहनी चाहिये |
4, इस तरह के नियम जिस अवधारणा से निकलते हैं वो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लघंन
वहीं म.प्र. हाईकोर्ट ने भी ऐसे ही एक मुकदमें में फैसला सुनाते हुए जस्टिस सुजॉय पॉल ने , जस्टिस जेपी गुप्ता और जस्टिस नंदिता दुबे की पीठ ने कहा " विवाहित महिलाओं को अनुकंपा नियुक्ति के अधिकार से वंचित करने की नीति भारतीय संविधान के समानता के अधिकार का हनन है | अनुकंपा नियुक्ति को लेकर विवाहित बेटियां भी हकदार होंगी , कोर्ट का ये फैसला बड़ा ही सराहनीय फैसला है न्याय की बात अगर की जाये तो यह न्याय वहीं हुआ जहां पर यह मामला कोर्ट तक पहुंचा |
जहां कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पिता की संतान बेटा ही नहीं बल्कि बेटी भी है जहां पहले बेटियों का विवाह के बाद पिता की सपंत्ति पर कोई हक नहीं होता था वहीं आज कोर्ट के इस सराहनीय फैसले से अब विवाहित बेटियां भी सपंत्ति की हकदार व अनुकंपा नियुक्ति की हकदार बन गई हैं जो कि बेटा व बेटी में बराबरी को दर्शाता है |
धन्यवाद
रिंकी पांडेय
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