मत जलाओ अब मोमबत्तियां

मन में आया एक विचार,
क्यूं जलाते हो मोमबत्तियां?
जब होती है कहीं,
किसी की अस्मत तार तार।
शरीर से ज्यादा तो,
मन जलता होगा उसका,
जिसके साथ हुए दुष्कर्म को,
बनाते हो तुम हथियार।
न्याय दिलाना चाहते हो,
या नाम कमाना चाहते हो??
जब सवालों के बाणों से,
हृदय छलनी करते हो हर बार।
क्या समाज सेवी संस्था,
क्या मीडिया,,
किसी ने न छोड़ा है।
हर घड़ी हर पल,
गिद्दो की तरह नोचा है।
जब जन्मता है बालक,
होता अबोध,अनभिज्ञ है।
तब क्यूं नहीं करते परवरिश,
नहीं देते क्यूं संस्कार ?
मोमबत्तियाॅं जलाकर,
किसको न्याय दिलाते हो?
धरने पे बैठकर किसको ,
राह दिखाते हो??
नहीं माॅंगती दया तुम्हारी,
करे लड़की विनती एक बार।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ संग ,
सिखाओ जरूर चलाना हथियार।।
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