मातृत्व एक खबसूरत अहसास

मातृत्व एक खबसूरत अहसास

दुनिया में मातृत्व से बड़ा खूबसूरत,  और सुखद अहसास  और कुछ नहीं है। एक नारी में मातृत्व का नैसर्गिक गुण होता है..। इसीलिए वो बच्चे, बूढ़े सब पर अपना प्रेम लुटाती है..। माँ शब्द की मिठास को तो कोई नकार नहीं सकता..।तो आइये हम पेरेंटिंग के कुछ सुझाव को देखें और समझे...। 

पड़ाव नम्बर 1- जब बच्चा जन्म लेता है। माँ शारीरिक और मानसिक बदलाव को झेलती है, और जल्दी आत्मसात नहीं कर पाती  है। थोड़ा समय लगता है। घर के सदस्यों को चाहिए कि वे माँ कि मनस्थिति को समझे,  और प्रेम से  स्थिति को सभाले। माँ को भी नई परिस्थिति के साथ ताल मेल बैठने कि कोशिश करनी चाहिए..। सबसे बड़ी समस्या नींद पूरी ना होना...। घर के सदस्यों से बात कर आप बच्चे को उन्हे दे... अपनी नींद पूरी करें...। 

अपने खाने पीने का ख्याल रखें...। अपनी बात मन में ना रख जो समस्या हो निःसंकोच परिवार वालों को या पति को बताये। संवाद बनाये रखना इस समय बहुत जरुरी है... क्योंकि जो समस्या आपको बड़ी लग रही वो दूसरे को छोटी लग सकती है। इसलिए सकारत्मकता बनाये रखें। 


 पड़ाव नम्बर 2 - बच्चा बड़ा हो गया स्कूल जाने लगा... आप बच्चे को अभी भी समय दो.. चाहे आप वर्किंग हो या ना हो... माँ बनने के साथ ही ये बात दिमाग़ में रख कर चले, कि आपको उसे समय देना है। बच्चा अगर क्रेच जाता है या प्ले स्कूल... वहां से आने के बाद उससे दिन भर कि सारी गतिविधियों को पूछे....। बच्चे को गुड टच और बैड टच के बारे में जरूर बताये... चाहिए वो लड़का हो या लड़की..। बच्चे को अनजान व्यक्ति से बात करने से मना करें..। उसकी जिद्द को भी ना कहना सीखे। 

पड़ाव नम्बर 3-- बच्चा टीनएज में आ गया... ये उम्र बहुत ही खतरनाक होती है। उनको सब कुछ जानने की  जिज्ञासा होती है... उनसे कुछ छुपाये नहीं, उनकी दोस्त बने.... जिससे वो सहजता से आपसे अपनी समस्या कह सके..। आप अपने हिसाब से उनकी समस्या का निदान बताये.... जिससे उनकी जिज्ञासा भी शांत हो सके... और वे किसी और गलत रास्ते पर ना जाये...। अगर उनसे कोई गलती हो भी गई हो, तो उन्हे समझाये, सुधारे और इस तरह अहसास कराये की उन्हे लगे की हाँ ऐसा नहीं करना चाहिए। इस उम्र के बच्चों को डांट फटकार कर सही रास्ते पर नहीं ला सकते है... क्योंकि ये उम्र  बहुत जिद्दी होती है..। आप प्यार से ही समझा सकते है। तुलना ना करें किसी से..। हर बच्चे में कोई ना कोई हुनर होता है, उसे पहचान कर आगे बढ़ाये... पर उसके दोस्तों या रिश्तेदारों के बच्चों से तुलना ना करें..। वो जैसा है श्रेष्ठ है। 

पड़ाव नम्बर 4-- बच्चे थोड़े बड़े और समझदार हो गये... पर स्कूल की बंदिश के बाद कॉलेज की स्वतंत्रता बहुत भाती है.. यहीं वो समय है जब बच्चे बिगड़ते है या बन जाते है..। वे सब कुछ का अनुभव लेना चाहते है..। उनको आप प्यार से ही समझा सकती है। क्योंकि अब वे वयस्क हो गये है...। उनकी अपनी सोच भी विकसित हो गई है..। तो दोस्त बन उन्हे राय दे...।बच्चे की परवरिश से उसके संस्कारों की छाप दिखती है..। उन्हे पैसों की कीमत भी समझाये..।

अंत में मै यहीं कहना चाहूँगी की बच्चे वहीं सीखते है जो आप करते है... वो आपका भविष्य है..। बड़ों का मान सम्मान करना भी बच्चे आप से सीखते है.. दादा दादी के साथ बच्चे वहीं करते है जो माँ करती है..। कहना नहीं होता,  वो अपने आप सीख जाते है। आप माँ है आपकी नैतिक जिम्मेदारियां ज्यादा है..। आप रिश्तों को इज़्ज़त दोगे तो बच्चा भी देगा..। बच्चे अपने माँ -बाप की परवरिश का आईना होते है। जो फसल आप बोते हो वहीं काटोगे..। 


-- संगीता त्रिपाठी 

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