नजरें मोहब्बत

नजरें मोहब्बत
आशा बदहवास सी दौड़ती चली आ रही थी। उसकी धड़कन बहुत तेज चल रही थी ।उसे मालूम नहीं आज उसके साथ क्या हुआ है। शायद कुछ नया परिवर्तन महसूस कर रही है। ऐसा पहले उसे जिंदगी में कभी नहीं हुआ। निशांत आज 2 साल में अपनी पढ़ाई पूरी करके अमेरिका से भारत लौट रहा है।
बचपन की दोस्ती कब आशा के मन मे प्यार का रूप ले गई उसे खुद भी नहीं पता नहीं था।निशांत और आशा बचपन से ही साथ में खेले बड़े हुए थे बात बात में झगड़ना, और हर बात एक दूसरे को बताना, एक दूसरे के बिना कहीं नहीं जाना अपने सुख में ही नहीं दुख में एक दूसरे को शामिल करना ।पर यह दोस्ती कभी इजहार में नहीं बदली।
अमेरिका जाते वक्त निशांत ने मुड़कर एक नजर देखा ही तो था पर कहा कुछ नहीं।
अब तो वह 2 साल पढ़कर आ रहा है तो क्या मेरे जज्बातों को मेरे आंखों को पढ़ लेगा। इसी घबराहट में यह निशान्त से मिलने भी नहीं गयी।
निशांत आशा से मिलने जब आया । निशांत ने कहा आशा मेरी तरफ देखो यह आंखें झुकी हैं क्यों? आज मुझसे नाराज़ होकर गुस्सा नहीं कर रही।और मुझसे मिलने क्यों नहीं आई। आशा बिना नजरे मिलाए निशांत से बात करने लगी।अब तुम बहुत बड़े आदमी बन जाओगे इसलिए अब तुमसे नाराज नहीं होंगी। निशांत ने कहा तो यह बात मेरी तरफ नजरें उठाकर ही बोल दो।अमेरिका जाते वक्त जो मेरी निगाहें कह गई ,क्या तुम्हारी आंखें भी वही कह रही हैं बस इतना देखना चाहता हूं। और दूर रहने पर जो मैंने तुमको याद किया ,तुम्हारी दोस्ती को याद किया ,तुम्हारी देखभाल को याद किया वहीं देखना चाहता हूं।
आशा ने निशांत की तरफ नजरें उठाई। फिर एक मोन सा छा गया । आशा की आंखें वही कह रही थी जो निशांत की आंखें कह रही थी। और दोनों खो गए। तो समझ लीजिए आप अब वो एक हो गए।
"मोहब्बत को कहा जाए ये जरूरी नहीं होता
इश्क मोहब्बत के जज्बात नजरों से भी बयां होते हैं।"
स्वरचित व मौलिक
एकता श्वेत गोस्वामी
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