#नखरे रीति-रिवाज जरूरी हैं, समधी जी

"तो कब आ रहे हैं तुम्हारे पापा?"जयाजी बोलीं
"मम्मी जी,पापा की तबीयत खराब है तो उन्होंने कहा है कि वे बैंक अकाउंट में पैसे जमा कर देंगे।फिर आप जैसे कहेंगी वैसे सामान खरीद लेंगे।"रीमा ने कहा
जयाजी गुस्सा हो कर बोलीं,"बेटी की शादी के पहले साल के हर त्योहार पर मायके से सामान आता है। रीति-रिवाज के हिसाब से सब काम होंगे।तुम्हारे माता-पिता को इतना भी नहीं मालूम?बड़मावस के व्रत के लिए पीतल का बड़ा करुआ और उसमें भरकर मिठाई,बाकी सब पूजा के सामान के साथ तुम्हारे घर से ही आएगा।"
"मम्मी जी,पापा को मौसमी बुखार आ गया है।"रीमा बेचारगी से बोलीं
"छोटे-मोटे बुखार के चलते हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ सकते।अपने पापा से बोलो,दवा लें लें।वैसे भी रात को चलकर सुबह आएं और सामान देकर वापस चलें जाएं।कौन रोक रहा है,उनको यहां?"जयाजी बोलकर चली गईं
रीमा के पास कोई चारा नहीं बचा।घर फोन कर उसने मम्मी से पूछा,"मम्मी,अब पापा की तबीयत कैसी है?"
मम्मी बोली,"दवाई ली थी तो अभी बुखार नहीं है।"
इतने में पापा ने फोन लिया,पूछा, "बेटा,तुमने बात की समधन जी से।"
रीमा चुप रह गई,पापा समझ गए।आखिरकार अपनी बेटी के मन की बात माता-पिता बिना कहे ही जान लेते हैं।
पापा बोले,"व्रत पांच दिन बाद है।मैं कल तक ठीक हो जाऊंगा।कल रात चलकर परसों सुबह आ जाउंगा। फिर दिन में कोई बस पकड़ कर लौट आऊंगा।"
रीमा ने कहा,"पापा,मैं सुनील से कह देती हूॅ॑।वह मम्मी जी को मना लेंगे।शाम को ऑफिस से आने पर बात करती हूॅ॑।"
पापा बोले,"बेटा,मैं आ जाऊंगा।तुम दामादजी से नहीं कहलवाओ।चिंता नहीं करो।"
एक दिन छोड़कर अगली सुबह रीमा के पापा रात भर यात्रा कर रीमा के ससुराल पहॅ॑चे।
रीमा के ससुर दीनानाथजी ने उनका स्वागत किया। उन्हें खबर भी नहीं कि रीमा के पापा रमाकांतजी बुखार में चलकर एक रस्म की खातिर सामान लेकर आएं हैं।
रीमा ने पापा को फ्रेश होने को कहा।चाय देते समय रीमा का हाथ पापा के हाथ से छू गया।उसे गर्म लगा,फौरन रीमा थर्मामीटर लाई,उन्हें १०१°फाॅरेनहाइट बुखार था।
दीनानाथजी समझे कि सफर की थकान से बुखार आ गया।
इतने में सुनील भी जॉगिंग से लौट आया,अभिवादन किया।रीमा ने बताया कि बुखार तीन चार दिन से आ रहा है।
दीनानाथजी बोले,"भाईसाहब,बुखार में आपको आने की जरूरत नहीं थी।"
सुनील ने भी कहा,"पापाजी, आपको परेशान होने की जरूरत नहीं थी।"
पहले तो रमाकांतजी चुप रहे,फिर उन लोगों के बार बार बोलने पर रमाकांतजी ने कहा,"व्रत-त्योहार के लिए सामान देना जरूरी है। रीमा के कोई भाई-बहन तो है नहीं।समधन जी ने कहा था कि शादी के बाद के पहले साल के हर त्योहार में मायके से पूजा का सामान आता है।"
दीनानाथजी ने जयाजी से पूछा,"आपको पता था कि भाईसाहब की तबीयत ठीक नहीं है?"
जयाजी पर अब तक घड़ों पानी पड़ चुका था।वह काफ़ी शर्मिंदा थीं।
जयाजी बोली,"हां,मुझे पता था कि भाईसाहब की तबीयत खराब है।मैंने ही जिद कर रीमा से कहा था कि भाईसाहब को सामान लेकर आना होगा।"
रमाकांतजी की ओर मुड़कर हाथ जोड़कर बोलीं,"भाईसाहब,मैं आपसे माफ़ी मांगती हूॅ॑।"
रमाकांतजी हड़बड़ाकर बोले,"समधनजी,माफ़ी मांग कर मुझे पाप का भागीदार नहीं बनाइए।"
जयाजी बोली,"भाईसाहब,मैं सच्चे दिल से आपसे माफ़ी मांग रहीं हूॅ॑।मुझे क्षमा कर दीजिए।मैं इंसानियत भूल बैठी थी।लड़के वाली हूॅ॑,यही सोच कर मैंने जिद की।सुनील,जाओ, भाईसाहब को डाॅक्टर के यहां दिखाकर लाओ।"
(स्वरचित व मौलिक)
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