एक प्याली चाय

निंदिया से जगा जाए
विचारों के ताले खोल जाए
जब यारों के साथ पी जाए,तो किस्से सुनवाए
कहे खुद को संगिनी मेरी,ये चाय
चाहे हो नुक्कड़ की या हाई टी की चाय
बारिश का मज़ा दोगुना कर जाए
सर्द हवाओँ में हल्की आँच दे जाए
न करे फर्क फुरसत में या भागम-भाग में
अपने रंग में जीवन के सभी रस घोल लाए
एक प्याली चाय
जो पूछुं मैं चाय की प्याली से
ऐसा क्या है तुझमें,जो तू इतना इतराये?
वो बोले,आ तुझे सिखाऊँ,
भागते हुए वक़्त पर कैसे लगाम लगायें?
उसे भी पिलाई जाए एक प्याली चाय ।
सुषमा त्रिपाठी
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