पिंजर ... पूरो की कहानी.... अमृता प्रीतम

पिंजर ... पूरो की कहानी.... अमृता प्रीतम

पिछली साल मुझे हिंदी दिवस पर अमृता प्रीतम जी की एक पुस्तक पिंक कामरेड की तरफ से ईनाम स्वरूप मिली थी मैने उनको पढा बहुत अच्छा लगा | उनकी एक एक कहानी अपने आप में लाजबाब है | अमृता प्रीतम पंजाबी लेखिकाओं में सबसे लोकप्रिय लेखिका थी | पंजाब के गुजरावाला जिले में पैदा हुयी थी उन्होंने लगभग 100  पुस्तके लिखी है | उन्हें साहित्य एकेडम पुरस्कार भी मिला था |

उनको 1947 में लाहौर छोड़ कर भारत आना पडा़ था बंटवारे पर लिखी उनकी एक किताब दोनों ओर से उजड़े लोगों की एक टीस सी बयां करती है|

उन्होंने अपनी पुस्तक में बहुत सी औरतों का दर्द बयां किया है जिनका बंटबारे के दौरान सब कुछ उजड़ गया था| उनके उपान्यास पिंजर एक लड़की पूरो की कहानी है जिस पर एक हिंदी फिल्म बनी है | पूरो जो भारत के बंटवारे के वक्त पंजाब में हुए दंगो की चपेट में आ जाती है | उन्ही दंगो में एक लड़की भी अगवा कर ली जाती है जिसे पूरो अपनी जान जोखम में डालकर बचाती है और उसे सही सलामत अपने घर पहुँचाती है|

तब उसके मन में ये शब्द आतेहै"कोई भी लड़की हिंदू हो या मुस्लिम अपने ठिकाने सही सलामत पहूंच गई तो समझना पूरो की आत्मा ठिकाने पहूंच गयी | 

पूरो के यह शब्द सुनकर एक सिरहन सी होती है जिसमें औरत के मन में छिपा डर, और इच्छा और सपनों को उन्होंने बहुत खूबसूरती से अल्फ़ाज़ दिये है|

अमृता प्रीतम के बहुत आलोचक भी रहे हैं पर वो अपना लेखन निंरतर करती रही है उनके जीवन में ओशो का भी महत्वपूर्ण स्थान था उनकी पुस्तक की भूमिका ओशो ने ही लिखी थी

उनकी कलम औरतों को आवाज देने वाली थी उनका जीवन दुखो और सुखों से भरा रहा उदासियों में भी घिरकर अपने शब्दो से उम्मीद दिलाती है | वे लिखती है -

दुखांत यह नहीं होता है कि जिंदगी की लंबी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखरते रहे और आपके पैरों से सारी उम्र लहू बहता रहे |

दुखांत यह होता है कि आप लहू लुहान पैरों से एक उस जगह पर खड़े हो जाये, जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे

31 अक्टूबर 2005 को दिल में उनका निधन हो गया पर उनकी कहानियाँ अभी भी हमें उनकी लेखनी की याद दिलाती है

स्वरचित

श्रुति त्रिपाठी

# मेरी प्रिय लेखिका

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