नेता नहीं वो हमारा अपना अन्नदाता है !

कड़क ठण्ड में ,पानी से नहलाओ ,
हम सभी को ये दे खाने को ,
पर इसे जम के बस लाठी खिलाओ ,
शर्म से न अब कोई लज्जाता है ,
क्या हुआ अगर वो अन्नदाता हैं ?
सर्दी,बारिश, ओला ,इसके खिलाफ ,
सरकार, कानून, व्यवस्था इसके खिलाफ,
भरी धुप में नंगे सर, बस शरीर खपाता है ,
बेवकूफ जनता का क्या जाता है ,
क्या हुआ अगर वो अन्नदाता है ?
कितने फंदे पर लटक गए ,
कितने उधार तले कुचल गए ,
तुम्हरी खातिर वो मर जाता है
भीख नहीं , वो अपना हक़ मांगता है,
भूखे मर जाओगे खाने वालो,
वादों से किसी का पेट नहीं भर पाता है ,
नतमस्तक हो , उसका सम्मान करो,
बहुत फर्क पड़ता है, उसकी मांग से
नेता नहीं वो, हमारा अपना अन्नदाता है |
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