राही किस ओर चला....

कई बार हम संघर्षों से घबराकर हार मान लेते हैं और आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लेते हैं, जो अनुचित है।जीने की प्रेरणा देती मेरी यह रचना.....
राही किस ओर चला क्षितिज एक छलावा है....
क्षितिज के उस पार क्या है किसी ने न जाना है,
सारे लक्ष्य हैं इस पार ही उस पार तो विराना है,
जिस अवनि पर जन्म लिया पहले उसका कर्ज़ चुकाना है,
संगी-साथी मीत यहीं हैं जीवन का संगीत यहीं है,
मलयज पवन से तान मिला प्रकृति संग ताल मिला फिर देख नित नया सवेरा है,
ऐसी अनुपम रचना छोड़ किस भ्रम को पाना है,
पावन बड़े हैं काम पड़े तेरे पग किस ओर बढ़े,
मृगतृष्णा और छलावा है पथिक उस पार की राह इक भुलावा है,
उर्वी अंक में खेला है उसकी धूलि से शोभित तेरा भाल है
तू इस माटी का ही लाल है,
धूनी यहाँ रमा ले मिला जो मनुज रूप सारे आनन्द उठा ले,
पंछी तू इस बगिया का खोल पंख चहचहा ले,
कलरव से बगिया भर दे धरती -व्योम आनन्दित कर दे,
क्षितिज के उसपार क्या है किसी ने न जाना है,
सारे लक्ष्य हैं इस पार ही उस पार तो विराना है,
#अनकहेभाव #अनछुएअहसास
सुमेधास्वलेख,
स्वरचित, मौलिक।
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