रामायण की कुछ झांकियाँ दादा जी के संग ( कहानी - 6 )

दादाजी बाहर बरामदे में आराम कुर्सी पर बैठे थे । दरअसल राघव का स्कूल से वापस आने का समय हो चुका था और दादा जी बैठे उसी का इंतजार कर रहे थे।
नियत समय पर राघव की स्कूल बस रुकती है और राघव सीधा दादाजी के पास पहुँचता है ।
दादा जी को प्रणाम कर राघव दादा जी के पास बैठ गया ।
अरे ! मुँह-हाथ धोकर पहले कुछ खा-पी लो , फिर एक साथ बैठेंगे 'दादा-पोता' - दादा जी ने उसका बैग उतारते हुए कहा।
नहीं-नहीं , दादा जी …….पहले आप मेरे इस प्रश्न का उत्तर दीजिए - राघव बोला ।
तुम और तुम्हारे प्रश्न ……. यह कहकर दादाजी हँस पड़े ।
दादा जी…... यह भी 'विविधता में एकता' क्या है , इसका क्या अर्थ है - राघव ने पूछा ।
वाह ! यह तो बहुत ही खूबसूरत प्रश्न है …….यह बात भी मैं तुम्हें रामायण के एक किस्से द्वारा ही समझाता हूँ - दादा जी ने आश्वासन देते हुए कहा ।
वाह ! दादा जी …...रामायण ! फिर तो बहुत मजा आएगा । मुझे तो रामायण सुनना-देखना बहुत ही अच्छा लगता है - राघव ने जवाब देते हुए कहा ।
देखो बेटा …..तुम जानते हो ना कि राम ,लक्ष्मण और सीता जब वन में गए तब बिल्कुल खाली हाथ थे यानि उनके पास कुछ भी नहीं था- दादा जी ने कहा।
राघव ने सहमति से सिर हिलाया ।
दादाजी आगे बोले - और जब रावण सीता का हरण करके ले गया तो भी राम जी के पास कुछ नहीं था। वह बिल्कुल निहत्थे थे , जबकि रावण बहुत शक्तिशाली और दशानन जाना जाता था ।
अच्छा दादाजी ….. पर जीत तो राम जी की ही हुई थी , फिर वह कैसे ????? - राघव ने पूछा ।
बेटा , वही तो बता रहा हूँ । राम जी का साथ बहुत से लोगों ने दिया , जैसे कि उनमें से कुछ वानर थे, कुछ कबीले के लोग , लोग पशु-पक्षी और अलग-अलग धर्म-संस्कृति के लोग और इस तरह से राम जी की जीत हुई - दादा जी ने कहा।
राघव , हमेशा याद रखो कि विविधता में एकता होती है - दादा जी ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा ।
समझ आ गया दादा जी …….
यानि हमें मिलकर रहना चाहिए जिससे कि कोई व्यक्ति हमें कोई नुकसान न पहुँचा सके - राघव ने कहा ।
शाबाश बेटा ! बहुत अच्छा - दादा जी बोले।
मिलकर रहने में ही सबका भला होता है और हर कार्य संभव हो जाता है।
Madhu Dhiman
Pink columnist-Haryana
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