स्त्री तेरे रूप अनेक

माँ, बहन, बेटी, पत्नी, प्रेमिका और ना जाने कितने रिश्तो को निभाती है ताउम्र ये स्त्री..
हर रूप मे खुद को पूर्ण करती है स्त्री..
घर और बाहर दोनों जगह कि जिम्मेदारी को बखूबी निभाती है..
करती कभी ना शिकायते अपनी थकान कि..
घर को घर बनाती है एक स्त्री... हर रूप मे खुद को ढाल लेती है..
बेटी से बहू बनने का सफर भी बड़ी खुशी से निभा जाती है..
दो कुल को जोड़कर उनका मान सम्मान बढाती है स्त्री..
हर रूप मे स्त्री खुद को पूर्ण कर जाती है.. पिता, भाई बनकर भी कभी कभी बखूबी अपना फ़र्ज निभा जाती है..
कभी उम्मीद नहीं करती कि उसको क्या मिलेगा क्या नहीं..
वो तो अपनी जिम्मेदारी हँसते हँसते निभा जाती है...
***स्त्री तेरे रूप अनेक ***
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