सौम्य और आकर्षक व्यक्तित्व की धनी-मृदुला गर्ग जी

"औरतों को हमेशा ही बस एक जिस्म और एक चीज़ की तरह देखा जाता रहा है, पर औरतें किसी मर्द के लिए, अपने पति के लिए ऐसा नहीं सोच सकती। शायद इसीलिए सब इतने क्रोधित हो गये।"
यह वक्तव्य है प्रसिद्ध लेखिका मृदुला गर्ग जी का उनके बहुचर्चित उपन्यास "चित्तकोबरा" के संदर्भ में। सन् 1979 में मृदुला जी का यह उपन्यास प्रकाशित हुआ था। स्त्री के मन की परतो को बेबाकी से खोलता और उसे उसी रूप में लिखना बहुत लोगों को रास नहीं आया। और इस उपन्यास को अश्लील करार दिया गया।काफी विवाद में रहने के बाद आखिर में मृदुला जी ने केस जीत लिया। वे जेल जाने से बच गयी।
उनका जीतना न केवल लेखन की स्वतंत्रता की जीत थी बल्कि स्त्री को नपे तुले आयाम में गढ़ते रहे समाज को भी करारा जवाब था कि बेबाक रवैया लैंगिक नहीं हो सकता है। और स्त्री का मन भी स्वतंत्र है अपनी सोच अपने तरीके से रखने को।
विरोध झेलने के बाद भी उनकी कलम नहीं रुकी और वे अपने में मग्न बल्कि पहले से अधिक लिखती गई और आज भी इस क्षेत्र में सक्रिय है।
मृदुला जी से मेरा प्रथम परिचय उनके लिखे प्रथम उपन्यास "उसके हिस्से की धूप" पढ़ने से हुआ। त्रिकोणात्मक प्रेम पर लिखा यह उपन्यास प्रेम के आदर्श मिथक को तोड़ता सा प्रतीत होता है। उनकी सधी भाषा जैसे दिल में उतरती सी महसूस होती है।
मृदुला जी का जन्म 25अक्तूबर 1938 को कलकत्ता (प. बंगाल) में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थ शास्त्र में एम. ए. किया। फिर इसी विश्वविद्यालय में कुछ वर्षों तक अध्यापन किया। उनके घर में बचपन से ही साहित्यिक माहोल रहा। उनकी माता और परिवार के सदस्यों को साहित्यिक पुस्तकों को पढ़ने का शौक था और तभी से उनका रूझान साहित्य की तरफ होने लगा। शादी के बाद 1970 से वे निरंतर लेखन कार्य कर रहीं है।
मृदुला जी के उपन्यास, कहानियाँ और लेख विविधता और नयापन लिए हुए होते है। इनके अब तक प्रकाशित पुस्तकें है- "उसके हिस्से की धूप" , "चित्तकोबरा" , "अनित्य", "मैं और मैं" , "कठगुलाब" , "मिलजुल मन" , "वसु का कुटुम्ब" प्रमुख हैं। इसके अलावा कहानी संग्रह और यात्रा संस्मरण भी प्रकाशित हुआ है। "एक और अजनबी" नाम से नाटक भी इन्होंने लिखा है।
इसके अलावा इंडिया टूडे के 2003 से 2010 तक के हिन्दी संस्करण में इनका एक व्यंगात्मक स्तंभ "कटाक्ष" काफी चर्चित रहा।
मृदुला जी ने बहुत से पुरुस्कार और सम्मान भी अर्जित किए। 1988 में साहित्यकार सम्मान, साहित्य भूषण से सम्मानित किया गया। 2001 में हैलमेन हैमेट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2004 में व्यास सम्मान तथा 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।इसके अलावा राम मनोहर लोहिया पुरस्कार से भी यह सम्मानित हो चुकी हैं।
अर्थ शास्त्र से ग्रेजुएट जब साहित्य जगत में तहलका मचाता है तो लोगो को आश्चर्य होता है। मृदुला जी के विवाह के पश्चात उनका अध्यापन का कार्य छूट गया। वैवाहिक जीवन में अपने कर्तव्यों के निर्वहन के साथ ही उनके मन में अपनी पहचान बनाने की ललक कही न कही रही होगी। साथ ही विवाह के पश्चात मन के भीतर मचलते प्रश्नों और उमड़ते भावों को उन्होंने एक दिशा देना तय किया। इन भावों को शब्दों का अमली जामा पहनाकर मृदुला जी ने साहित्य जगत में कदम रखा। और सभी मिथक तोड़ते हुए अब तक लेखन कार्य में संलग्न हैं।
मृदुला जी का सौम्य व्यक्तित्व बरबस ही आपको आकर्षित करता है। और उनकी लेखनी सीधे दिल में उतरती चली जाती है। साथ ही एक सोच और सन्नाटा आपके भीतर छोड़ देती है, संबंधों को, मानवीय पहलुओं को नये सिरे से सोचने पर मज़बूर करती है।
साथ ही स्त्री के लिए गढ़े आयामों को भी तोड़ती हैं। स्त्री को स्वाभाविक रूप में जैसी वो है और जैसा वो मन में सोचती है, उसी रूप में गढ़ती है।
मृदुला जी एक प्रेरणा दायक व्यक्तित्व है। उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उम्र के इस पड़ाव में भी उनका सक्रिय रहना मुझे सबसे अधिक प्रेरणा देता है।
धन्यवाद
अनामिका अनु
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