स्त्री से है सृष्टि अनमोल

स्त्री तेरे रुप अनेक
स्त्री से है सृष्टि अनमोल
फिर भी न जाने तेरा कोई मोल
कर दिया कैद दर्द की दीवारों में
उफ़ भी न कर पायी बेगानों से
बन कर सरस्वती दूर किया अज्ञान को
क्यों तुझे ही दूर कर दिया ज्ञान से
काली बन कर किया दुष्टों का संहार
क्यों दुष्टों ने तेरी अस्मिता पर किया प्रहार
बन कर लक्ष्मी बदला सौभाग्य
फिर क्यों तुम्हें दर-दर भटका दिया
स्त्री तेरे रुप अनेक
मन में प्यार का समुंद्र लिये लहरों में बहती है
भंवर में फंसी तो खुद ही कश्ती बचा लेती है
न समझो कमजोर इनके इरादों को
न समझो इनको ओस की बूंदे
जो धूप में बिखर जाती हैं
स्त्री हैं ...खुशबू की तरह
जिनके आने से महक जाती हैं फ़िजा
जिनके दुख से लग जाती हैं दिलों में आग
स्त्रियां हैं जीवन का अनमोल आधार
जिनके अस्तित्व से है नये सृष्टि का निर्माण
स्त्री तेरे रुप अनेक
#उत्सव के रंग
#स्त्रीतेरेरुपअनेक
#ThePinkComrade
अर्पणा जायसवाल
What's Your Reaction?






