सुभद्रा कुमारी चौहान - एक क्रांतिकारी कवयित्री

# इतिहास के पन्नों से मेरी मनपसंद लेखिका
आज हम बात करेंगे सुभद्रा कुमारी चौहान जी की जो एक हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका और कवित्री थी। इनका जन्म 16 अगस्त 1904 में इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था।
सुभद्रा कुमारी चौहान, चार बहने और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। बाल्यकाल से ही वे कविताएँ रचने लगी थीं। 'बिखरे मोती' उनका पहला कहानी संग्रह है। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी आदि कई कहानियां हैं जिनकी भाषा सरल बोलचाल की भाषा है। अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान ने कुल 46 कहानियां लिखी और अपनी व्यापक कथा दृष्टि से वे एक अति लोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में सुप्रतिष्ठित हैं।
सन 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से भी परिपूर्ण हैं।वे एक रचनाकार होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम की सेनानी भी थीं।
भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल 2006 को सुभद्राकुमारी चौहान की राष्ट्रप्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया था।
भारतीय डाकतार विभाग ने 6 अगस्त 1976 को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया था।
ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी (कविता) के कारण है।
कुछ प्रसिद्धि पंक्तियां जो हम बचपन से सुनते आए हैं। इतिहास के पन्नों में झांसी की रानी की वीरता पर आधारित हैं। वह इन्हीं सुभद्रा कुमारी चौहान जी की पंक्तियां हैं जो कुछ इस प्रकार हैं- -
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी |
खूब लड़ी मरदानी वह थी, झाँसी वाली रानी ||
यह समाधि यह चिर समाधि है , झाँसी की रानी की |
अंतिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ||
15 फ़रवरी 1948 (उम्र 43) को एक कार दुर्घटना में वीर कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी का आकस्मिक निधन हो गया था। इतिहास के पन्नों में एक वीरांगना की गाथा का बखान कर प्रसिद्ध क्रांतिकारी लेखिका को शत शत नमन करती हूं।
मेरा लेख पढ़ने के लिए सभी पाठकों का दिल से धन्यवाद❤️
हैप्पी{वाणी}राजपूत????
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