मेरी पसंदीदा पुस्तक है मेरी प्रिय लेखिका श्रीमती सुभद्राकुमारी जी द्वारा लिखित "बिखरेमोती "।जिसमे कुल पन्द्रह कहानियों का संग्रह है।इसमें भग्नावेष, पापीपेट ,
होली,मंझली रानी,परिवर्तन,द्रष्टिकोण, कदम के फूल,
किस्मत, मछुआरे की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती , अमराई ,अनुरोध व ग्रामीणा ये पन्द्रह कहानियाँ हैं।
हर कहानी की अपनी विषय वस्तु है। सुभद्रा जी की कहानियों की विषेशता यह है कि इनकी भाषा बहुत ही सुलझी ,साफ सुथरी सरल और सहज है।जब कोई भी कहानी हम पढ़ते हैं तो उस कहानी के पात्र और परिवेश बिल्कुल सजीव हो उठते हैं। कहानी में एक कला है। प्लाट्स में कुछ न कुछ अनोखापन है और चरित्रों में भी कुछ विचित्रता है।
जैसे अगर मैं बात करूँ मंझली रानी की तो मंझली रानी का चरित्र ऐसा कि वह पुस्तकों की बहुत शौकीन हैं देखने में भी सुन्दर परन्तु ससुराल में क्षत्रिय परिवार में ब्याही हैं और चूँकि उनसे बड़ी जेठानी हैं जो अपना वर्चस्व ससुराल में बनाये रखना चाहती हैं और झूठे सच्चे आरोपों से मंझली रानी को महल से निकलवाकर ही उन्हे शांति मिलती है। इस कहानी में लेखिका ने नारी के मन की ईर्ष्या की अतिश्योक्ति दिखाई है और समय व विधि किस तरह बिछुड़ों को मिलाती है यही इस कहानी की विशेषता है ।पुरुष और स्त्री के बीच केवल प्रेम संबंध ही नही मानवता का संबंध भी हो सकता है यह कहानी का चरम है।जैसा कि मँझली रानी व छोटे राजकुमार के मास्टर साहब के बीच है। सरल शब्दों में भी कटाक्ष है। यही सुभद्रा जी की लेखन शैली की विशेषता है।
ऐसे ही भग्नावेष में दो दिलों का मूक प्रेम प्रदर्शन है।पर समाज की ऊँच नीच की प्रथा न तब दो प्रेमियों को मिलने देती थी न अब। पापीपेट शहर कोतवाल बख्तावर सिंह की आत्मा की चेतना और पेट के लिये कमाने की लालसा का वर्णन है ।परिस्थतियाँ उसे उस समय बिट्रिशों के साथ काम करने और उनके सही गलत आदेशों का पालन करने के लिये मजबूर करती हैं । पद और प्रतिष्ठा की लालच में वह कैसे अपनी अन्तरआत्मा की आवाज को दबाता है यही इस कहानी में दर्शाया गया है।
द्रष्टिकोण का मुख्य चरित्र निर्मला सहृदया है जो अपने पति रमाकान्त की पूरी इज्जत करती है और सम्मान देती है लेकिन वह अपने विचारों को रखने में भी समर्थ है ।जब कहानी की पात्रा बिट्टन को उसका पति आधी रात को घर से निकाल देता है तो वह उसको अपने घर में शरण देने के लिये अपनी सास व पति दोनों के विरूद्ध जाती है और "पुरूष गल्तियाँ करे तो पत्नी स्वीकारे और पत्नी की गल्ती साबित भी न हो तो भी उसे प्रताड़ना मिले " इस सोंच का पुरजोर विरोध करती है और अपनी सास और पति को उनके द्रष्टिकोण के अन्तर को उनके समक्ष रखती है। कहानी की शैली में इतनी प्रवाह है कि जब आप पढ़ने लगो तो आप एक चलचित्र सा चलता महसूस करते हो।एक सफल लेखिका की यही पहचान है।
अब मैं बात करूँगी मेरी सर्वाधिक प्रिय कहानी अमराई और ग्रामीणा की। अमराई एक बहुत बड़ा खाली स्थान है जहाँ आम के व अन्य पेड़ पौधे लगे हुए हैं। सत्याग्रह आन्दोलन जोरों पर है और शहर की सभी बेटियाँ बहुयें वहाँ झूला झूलती राखी का त्योहार मनातीं।छोटे छोटे बालक बालिकाओं में इतना जोश और उमंग इतनी देश भक्ति की गीत गाते गाते भारत माँ की जय के जयकारे लगाते।अचानक से ठाकुरसाहब को आर्डर मिलता अमराई खाली करवाई जाये यहाँ स्वतन्त्रता आन्दोलन चल रहा है।कहानी की विशेषता यह है कि समय और परस्थतियों का इतना सटीक चित्रण है कि पढ़ो तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं ।सात साल का विजय और नौ साल की कान्ता (ठाकुर साहब के परिवार के बच्चे) पाँच मिनट के अन्दर बिट्रिश सरकार के आर्डर पर उनकी गोलियों के शिकार हो जाते हैं।जिन कलाईयों पर अभी राखी सजी थी वही कलाईयाँ और शरीर लहूलुहान होकर जमीन पर पड़े हैं।मात्र पाँच मिनट में मँजर बदल जाता है।इतना मार्मिक दृश्य ! पढ़कर एक ओर आँख भर आती है वहीं दूसरी ओर अपने देश के छोटे छोटे नौनिहालों के प्रति गर्व महसूस होता है।सुभद्रा जी की लेखनी से देश के प्रति उनके प्रेम और उनकी वीरता व साहस साफ़ झलकता है।वह एक स्वतन्त्रता सेनानी थीं यह रचना उसे बखूबी दर्शाती है।
अब विषय बदलती हूँ।मैं बात करूँगी सुभद्रा जी की कहानी ग्रामीणा की।ग्रामीणा की पात्रा सोना गाँव की खुली स्वछन्द हवा में पली बढी लड़की है।अपने माँ पिता की आँख का तारा है।बहुत ही मन्नतों के बाद वह पैदा हुई तो उसके माता पिता ने उतने ही प्रेम से उसका लालन पालन किया।माँ पिता की छत्र छाया में न वह बिल्कुल लड़कियों की तरह रही न ही उस पर प्रतिबंध थे।प्रकृति से अथाह प्रेम करने वाली साफ़ दिल की समझदार सोना। हर माँ बाप की तरह सोना के माता पिता भी उसे शहर ब्याहना चाहते थे। शायद यह तब की ही बात नही है यह अब भी है अब हौसले और बढ गये हैं अब माँ बाप अब अपनी बेटियों को दूसरे और अधिक सम्पन्न देश भेजकर खुश हैं। चाहें लड़कियाँ उस परिवेश को अपना पायें या नही।
इस कहानी का प्लाट भी यही है ।"सोना"
साफ दिल,निष्कपट और निष्कलंक है। पन्द्रह सोलह साल की सोना बाईस तेईस साल के शहरी जॉब वाले नौजवाँ को ब्याहती है।जो उसका ख्याल भी रखता है पर तत्कालीन पर्दा प्रथा में सोना को नही बाँध पाता।सोना एक पवित्र आत्मा है।बहुत कोशिश करने पर भी वह अपने आपको खुली हवा,पशुपक्षियों ,नदियों से दूर नही रक्ख पाती।पति उसको चाहता भी है पर अपने पुरुषत्व के दंभ में किसी आशंका मे सोना के साथ प्रेम संबंध नही रखता ।अन्ततः सोना अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर देती है। पति प्रेम व प्रकृति प्रेम में किसी एक को नही चुन पाती और धतूरा खाकर आत्म हत्या कर लेती है।यह व्यक्तित्व ही सोना के चरित्र व इस कहानी को अनोखा बनाता है।
इसी प्रकार सुभद्राजी की हर कहानी अपने आप में अनोखी है।तत्कालीन समाज के रीतरिवाज ,पहनावा ,
बोलचाल, सभ्यता ,समाज में नारी का स्थान,नारी के भाव सब कुछ बहुत बारीकी से सुभद्रा जी की कहानियों से स्पष्ट होते हैं। भाषा बहुत ही सरल,सहज आम बोलचाल की भाषा है।उनकी लेखनी पाठकों को बाँधे रखती है। कहानी के दो पृष्ठ पढ़ने के बाद उसको आगे और पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ती जाती है।
श्रीमती जी की कहानियों में उनके कवि हृदय की झलक भी कहीं कहीं स्पष्ट दिखाई देती है जिससे उनकी कहानियों का सौन्दर्य और अधिक बढ़ जाता है। सुभद्रा जी हिन्दी साहित्य का वह चमकता सितारा हैं जिसका प्रकाश साहित्य मंडल को सदैव प्रकाशमान और ऊर्जावान रखेगा।
पढ़ने और लिखने की शौकीन होने के कारण संक्षेप में मैं इतना ही कह सकती हूँ कि सुभद्रा जी की कहानियों से हमें यह भी सीख मिलती है कि कैसी शैली और विधा से हम पाठकों को बाँध सकते हैं।अपनी बात को आम बोलचाल की भाषा में किस प्रकार लिख सकते हैं ! सरलता, सहजता,काव्यता और लयात्मकता सुभद्रा जी की कहानियों की विशेषता है।ऐसी महान लेखिका को मेरा शत शत नमन!!
स्व रचित -सारिका रस्तोगी