आप हमारे साथ सोओगी सासू मां!

आप हमारे साथ सोओगी सासू मां!

पापा जी आपके मम्मी पापा ने आपके लिए इतनी लंबी बहु ढूंढ दी। जोड़ी नहीं मिलाई थी क्या उन्होंने””अरे बहू पहले इतनी लंबी नहीं थी तेरी सास। वह तो शादी के बाद बढ़ गई।” कह ठहाका मार जोर से हंसने लगे वह।यह सुन उर्मी की सास शरमाते हुए बोली “क्या आप भी बच्चों के सामने कुछ भी बोलने लगते हो।”

यह था उर्मी का ससुराल। शादी के बाद उर्मी को लगा ही नहीं कि वह अपने ससुराल में है। सास ससुर ने उसे कभी माता-पिता की कमी महसूस ना होने दी। पति भी उसका बहुत ध्यान रखते थे। ढाई साल का एक बेटा भी था उनका। घर का माहौल हमेशा खुशियों भरा रहता| सास ससुर एक दूसरे का बहुत ख्याल रखते थे|

वह तो कई बार अपनी सास को छेड़ते हुए कहती भी कि “देखो ना मम्मी, पापा तो आप पर इस उम्र में भी लट्टू रहते हैं। 1 मिनट के लिए आप को अकेला नहीं छोड़ते तो जवानी में क्या हाल होता होगा।” यह सुन उसकी सास कहती “अरे पगली उस समय घर परिवार काम धंधे से कहां फुर्सत थी। पहले तो हम अपने सास-ससुर के सामने घूंघट में ही रहते थे। जी भर कर देख भी नहीं पाते थे एक दूसरे को। अब थोड़ी जिम्मेदारियों का बोझ कम हुआ है तो एक दूसरे को समय दे पाते हैं। सच जीवन का यह एक बहुत ही अच्छा पड़ाव है।”

लेकिन खुशियां कब किसकी सगी हुई हैं? एक रात उर्मी के ससुर को हार्ट अटैक आ गया। तुरंत उनको हॉस्पिटल भी लेकर गए लेकिन हॉस्पिटल जाने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया। किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया। सब का रो रो कर बुरा हाल था। उर्मी की सास कई बार बेहोश भी हो चुकी थी। उर्मी किसी तरह अपनी सास व ननद  को संभाल रही थी लेकिन यह ऐसा समय होता है कि धीरज व शब्द भी साथ छोड़ देते हैं।। तेरहवीं तक तो घर में रिश्तेदारों व पड़ोसियों का आना जाना लगा रहा।

कोई भी उसकी सास को अकेला ना छोड़ता। तेरहवीं के बाद सभी रिश्तेदार चले गए। उर्मी की ननंद को भी जाना पड़ा क्योंकि उसका भी घर परिवार व बच्चों का स्कूल था। उसके पति ने अपनी बुआ को  कुछ दिनों के लिए रोक लिया। जिससे कि मम्मी एकदम से अकेली ना हो। उर्मी एक पल अपनी सास को अकेला ना छोड़ती| जब वह काम करती तो  बुआ सास व अपने बेटे को उनके पास छोड़ देती| जिससे कि वह अकेलापन महसूस ना करें। डेढ़ महीने बाद बुआ भी चली गई।

उनके जाने के बाद उसके पति उसे समझाते हुए कहा “उर्मी मम्मी को अकेले मत छोड़ना काम चाहे बाद में कर लेना। तुम्हें पता है ना इस समय मम्मी का क्या हाल है।”

उर्मी ने उनको तसल्ली देते हुए कहा “आप बेफिक्र रहें मैं उनके साथ रहूंगी।” रात को खाना खाने के बाद उर्मी की सास अपने कमरे में चली गई| उर्मी व उसके पति ने कई बार उन्हें कहा भी कि मम्मी आप हमारे साथ सो जाइए लेकिन वह बोली “बेटा तुम चिंता ना करो मैं ठीक हूं। तुम आराम से सो जाओ।”

देर रात उर्मी उठी तो उसने उनके कमरे की लाइट जली हुई देखी। दरवाजा खोल कर देखा तो वह अकेली बैठी हुई थी।

उर्मी उनके पास जाकर बैठ गई और बोली “मम्मी जी नींद नहीं आ रही। क्या पापा की याद आ रही है।” यह सुन उनकी आंखों से आंसू निकल गए। उर्मी ने उनका हाथ पकड़ा और बोली “मम्मी जी आप हमारे साथ हमारे कमरे में सोओगी। मैं आपको इस कदर यहां अकेला नहीं छोड़ सकती।”

यह सुन वह बोलीं “नहीं बहू मैं ठीक हूं। कुछ दिनों में इस अकेलेपन की आदत पड़ जाएगी और क्या अच्छा लगेगा मैं तेरे और विशाल के साथ कमरे में सोऊं।”

“मम्मी कैसी बात कर रही हो आप। हम आपके बच्चे हैं। यह समय ऐसी बातें सोचने का नहीं है। क्या आपको लगता है कि आप यहां परेशान रहोगे और हम वहां चैन से सो जाएंगे। नहीं मम्मी आपको हमारे साथ चलना ही होगा।”

“बच्चों जैसी जिद मत कर बहू।”

“मम्मी उर्मी सही जिद कर रही है और हम सब के बीच आप अकेले रहो तो फिर  हमारे होने का क्या मतलब। उठो अब हम आपकी एक नहीं सुनेंगे|” यह कह दोनों उन्हें अपने साथ ले गए।

उर्मी छोटे चिंटू को ज्यादा समय अपनी सास के पास छोड़ देती। चिंटू अपनी दादी के साथ खूब खेलकूद करता। रात में वह उसे कहानियां सुनाती। अब वह कहानी सुनते सुनते उनके पास ही सोने लगा। कुछ ही दिनों बाद उसे अपनी दादी के साथ सोने की आदत पड़ गई। किसी की कमी तो कोई पूरी नहीं कर सकता लेकिन परिवार के सहयोग से एक बुजुर्ग का अकेलापन जरूर दूर हो सकता है। जैसे उर्मी व विशाल ने किया। उनके सहयोग व अपनेपन के कारण उर्मी की सास इस दुख से धीरे-धीरे उबरने लगी थी और अब अपने पोते के साथ अपने कमरे में सोने लगी|

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आपकी सखी,

सरोज

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