आत्मबोध

क्या मैने पाया।
मोह माया में फंसकर,
धूमिल हो गई मेरी छाया।
अपनों संग मैं यूं बंधा,
स्वयं को मैने खो दिया।
प्रेम प्यार में रहना चाहा ,
ईर्ष्या से भी दूर न रह पाया।
स्वयं को जानने को ,
मुक्त होना चाहता हूं।
त्याग कर सब भावनाएं,
उन्मुक्त उड़ना चाहता हूं।
सुख दुख,हार जीत,
द्वेष ईर्ष्या तज चला।
प्रेम तुझे भी छोड़ अब ,
मोक्ष पथ पर मैं चला।
रूचि श्रीवास्तव
स्वरचित
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