बस तकिया कॉमन हो जाता है !

बस तकिया कॉमन हो जाता है !

घर जिसका मायना रिश्तों से बदल जाता है..बस तकिया कॉमन हो जाता है’..

सास -बहू का रिश्ता बहुत ही खट्टा मीठा होता है।वैसे खट्टा -मीठा तो माँ -बेटी का रिश्ता भी होता है पर वहाँ रूठना और मनाना दोनों साथ चलता है।यदि ये रूठना-मनाना सास- बहू के बीच में भी हो जाय तो ये रिश्ता कमाल का हो जाय।अब इस रिश्ते में रूठना तो दोनों साइड हो जाता है और मनाना दूर दूर तक नज़र नहीं आता।

रूठ गए तो रो-रो कर तकिया गीला हो जाता है और इस दर्द को केवल तकिया ही जान सकता है चाहे वो बहु हो या फिर सास.. अब ये मत समझियेगा कि दोनों का तकिया कॉमन होता है।गलतियाँ दोनों तरफ से होती हैं।’सास भी कभी बहु थी’ ये बात अकसर सास बनते ही भूल जाती है।वहीं बहु भी इतनी सीधी नहीं होती कि सास को न समझ पाए।पर क्या करे मायके की राजकुमारी दूसरे देश की महारानी की छत्र छाया में रहना जो पसन्द नहीं करती।इन राजकुमारी और महारानी के साम्राज्य तले पिस जाते है कुँवर सा यानी पतिदेव।जो बेटा आफिस से आते ही मम्मी कहता था अब वो सीधे राजकुमारी के कमरे में वो भी कमर बंद करके ऊफ़्फ़…..

इसकी भड़ास वो बेचारे ससुर जी पर निकालती हैं।ससुर जी तब कहते हैं-“सुनो सबके दिन आते हैं..हमारे भी थे..पर परिवार बड़ा था..फिर भी हम तो तुमको बीमारी का बहाना बना लिवा लाये न शहर..तो अब इनके दिन है..की लेने दो इन्हें भी”।

अब इस रिश्ते में आग लगाने वाला एक कैरेक्टर औऱ यानी ननद भी होती है।अब ये वो ही प्राणी होता है जो खुद किसी और के घर में बहु की भूमिका निभा रही होती हैं।और खुद तकिए सँग अपना दर्द बाँट रही होती है वहीं मायके में किसी को तकिए सँग दर्द दे रही होती है।सास भी जब माँ होती है तो अपनी बिटिया के दुख का रोना हमेशा रोती है..वहीं सास बनते ही किसी की बिटिया को…

आगे देखिये-” हमारी बिटिया तो सभी काम सलीके से करे है..सब टिंच कारोबार रहे है उसका”।अरे बहु को भी समय दो..उसके काम करने के तरीके को अपनाकर तो देखो..
वहीं दूसरी ओर टिंच काम करने वाली बेटी के काम में भी उसके ससुराल में मीन मेख निकाल ही देते है। और वो बेचारी भी तकिए को आंसुओं से भिगो रही होती है।कहने का सार बस ये ही है कि लोग वो ही होते हैं ,बस घर बदलते ही रिश्तों के मायने बदल जाते हैं।

धन्यवाद
आपकी स्नेह।।

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