एक छोटा सा कोना, जो मेरा हो बस मेरा

बाबुल मै तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ ,
ताउम्र चाहती हूँ ।
जो ब्याह के बाद भी न हो पराया,
वहां मेरी टूटी कांच की चिड़ियों से बनी माला का,
रंग बिरंगी, नयी पुरानी गुड़ियों का,
सखियों की चिट्ठियों और मेरी
लाली,बिंदी, झुमकियों का
सदा ही हो बसेरा ।
वो एक छोटा सा कोना ताउम्र बस मेरा हो मेरा ।
जीवन संगिनी बना तो लाए हो तुम अपने इस घर में ।
तुम्हारे इस घर में इक छोटा सा हो कोना,
जिस पर केवल हक हो मेरा ।
जहाँ न कोई पूछे "क्या लायी अपने बाबा के घर से,
यहाँ क्या है तेरा ।
चाहूँ जैसा उसको संवारू,
उसकी दरों दीवार से, चादर ,तकिए, बिछावन तक से
झलके व्यक्तित्व मेरा।
वो एक छोटा सा कोना जिस पर स्वामित्व हो मेरा ।
संतान की संतान की किलकारियों से महकते बड़े से घर में,
बस एक छोटा सा कोना हो मेरा ।
जहाँ आधुनिकता के युग में,
परम्पराएं रहती हों मेरी,
कुछ पुराने गीत ग़ज़ल हो,
सुगंधित फूलों और पौधों की हरियाली हो।
भक्ति, बौद्धिकता,और सौंदर्य का छोटा सा कोना,
जिस पर आधिपत्य हो सिर्फ मेरा ।
मैं तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
जो मेरा हो ,केवल मेरा।
#श्वेता_चौहान
#स्वरचित
#मौलिक
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