#एक चिट्ठी माँ के नाम

अरसे बाद जो खोली अलमारी,
तो उन साड़ियों के नीचे दबी,
नज़र आई वो पहली चिट्ठी ||
जो लिखी थी माँ तेरे नाम ससुराल की देहरी से ,
पर ना जाने क्यूँ भेज ना पायी थी ||
जिसको लिखते हुए आए थे आँसू इतने,
सोचा भेजूंगी तो बहाएगी तू आँसू कितने |
बरसों बाद झट से खोल बैठी पढ़ने,
आँखों से लगे मोती झड़ने ||
वो सुबह-सुबह जल्दी उठना ना भाता था ससुराल में,
वो साड़ी में खुद को लपेटना ना रास आता था ससुराल में ||
वो छोटी-छोटी बाते फिर से याद आयी,
माँ तुझे याद कर आँख भर आयी||
आज फिर बैठ गयी लिखने इक नई चिट्ठी तुझे ,
माँ तू बहुत याद आयी मुझे ||
माँ अब तो जल्दी उठने लगी हूँ मैं,
ससुराल को ही अपना घर समझने लगी हूँ मैं ||
तेरी तरह घर गृहस्थी संभालती हूँ मैं,
तेरी दी हुई सीख से अपनी बगिया संवारती हूँ मैं ||
पर तरसता है माँ दिल आज भी तेरा स्नेहमय स्पर्श को ,
इक बार तू लौट आ उस तारों भरे अर्श से ||
आज फिर तेरी याद बहुत जोर से आयी है,
आज फिर माँ को लिख इक नयी चिट्ठी मैंने साड़ियों के नीचे दबाई है ||
(एक बेटी के दिल से निकली आवाज)
✍️# दिल से दिल तक # पूजा अरोरा
# चिट्ठी
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