एक टुकड़ा बादल

आंके ठहरा है एक टुकड़ा बादल ।
करें तांक झांक मेरे मन के अंदर,
आंगन मन का भिगोने को क्यों आतुर है ये एक टुकड़ा बादल ।
पल पल अपना रूप बदलता ,
अनकही बातों को ये कहता,
क्या संदेशा तेरा लेकर आया है,
ये एक टुकड़ा बादल ?
संग शरारती हवा का झोंका
खींच रहा आंचल मेरा
क्यों आंचल ये भिंगोने , को मचल रहा है
ये नटखट बादल ।
धूप संग मिल के खेले आंख मिचौली
बन गयी जो किरणें उसकी सहेली
कभी ताप लगाए ,
कभी छांव सजाए ,
हरकतों से अपनी , तेरी याद जगाएं
ये एक टुकड़ा बादल ।
काजल बन के नैनों में उतरा ,
बूंद बन के होंठों पे है ठहरा ,
प्यास क्यों मेरे सपनों में जगा रहा है ,
ये एक टुकड़ा बादल ।
रंग इंद्रधनुष के भी , जो ये संग लाया
थोड़ी लालिमा सूरज की , ये जो चुरा लाया
रंग ये ओढ़ने को , क्यों व्याकुल हो रहा है ये मन
क्या उमड़ घुमड़ कर ,
तुम्हारे मन की व्यथा कह रहा है
ये एक टुकड़ा बादल ।
क्यों नहीं मेरे आसमां को , तुम्हारे आसमां से जोड़ देता है
ये एक टुकड़ा बादल ।
रचना - तुलिका दास
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