एक उम्र ऐसी थी#सुहाना बचपन

एक उम्र ऐसी थी
जब भोगदे का अंधेरा भी प्यारा लगता था
उस अंधेरे के बाद आँखों में चुभन भरा उजियारा था
छुक-छुक रेलगाड़ी की पटरी पर संगीत सुनाई देता था
धधक-धधक के ताल सँग रगों में गीत सुनाई देता था
एक उम्र ऐसी थी
जब रावण की हँसी और दशहरे का मैदान था
पिता के मजबूत काँधों पर बचपन विराजमान था
किसी और के हाथों में बुड्ढी के बाल देख मन ललचाता था
आसमान में उड़ते फुग्गों को देख हर बच्चे का मन मचलाता था
एक उम्र ऐसी थी
जब ज़रा सी बात में कट्टी हो जाया करती थी
ना रूठने वाला खास रहता था
ना मनाने के लिए कोई पास रहता था
कुछ ही पलों में बस बुच्ची भी हो जाया करती थी
एक उम्र ऐसी थी
जब मन के घोड़े भी खूब दौड़ा करते थें
तन गुलांन्टियाँ खाता था ज़मीन पर लौट भी लगाता था
हवाओं में बेबाकी थी उन्मुक्त उड़ने की आज़ादी थी
बड़ो का चलता ज़ोर था छोटों का हर ओर शोर था
एक उम्र ऐसी थी
What's Your Reaction?






