हाँ , मेरी सच्ची दोस्त है वो

ख़ुशी हो या ग़म मेरे सबकी साथी है वो ,
आँखों में हो नमी तो बिना बोले भाँप जाती है वो
जहाँ सब बेगाने वहाँ हाथ थाम लेती है वो
जब कभी अकेली होती हूँ खड़ी तो कहती ” मैं हूँ ना साथ तेरे “,
हाँ ,मेरी सच्ची दोस्त है वो ।
दूर होकर भी वो पास है
मेरे साथ न होकर भी हर कदम साथ है मेरे वो
जब भी महसूस होती एक सच्चे दोस्त की कमी तो मेरे मन में नज़र आती है वो
हाँ मेरी सच्ची दोस्त है वो ।
जीवन नैय्या जब डूबती मेरी तो बन जाती है वो माँझी मेरी
माँ बनकर लाड लड़ाती
पिता बनकर डाँटती वो
मुझसे पहले मेरी हर मुश्किल को गले लगाती वो .
है सहेेेेली बनकर हर मोड़ पर जीवन के हर दौर पर मेरा हौसला बढ़ाती वो ,
हाँ ,सच्ची दोस्त है वो ।
आज जब इस दौर में वक्त नहीं अपनों के लिए
परायी होकर भी अपनों से भी अपनी बन जाती है ।
बिख़रे थे जो सपने
टूटे से थे जो कुछ ख़्वाब मेरे
उसने उन्हें सवारा है
अपनी दोस्ती के विश्वास से मेरा नया जहाँ बसाया है ।
जब जिंदगी बन गयी मशीन उसने फिर से इंसान बनाया मुझे .
ऐसी ही है वो .
हां मे,सच्ची दोस्त है वो,
मेरी “पिंक कॉमरेड” ही तो है वो ।
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