हिंदी मेरा परिचय

बचपन से ही मेरी शिक्षा दीक्षा हिंदी माध्यम से हुई है ।जब आगे की पढ़ाई के लिए महाविद्यालय में अचानक से व्यवसाय प्रबंधन में स्नातकोतर (एम .बी .ऐ ) के लिए अंग्रेजी माध्यम से सामंजयस्य स्थापित करना पड़ा तो शायद इसलिए ही घबरा गई थी ।
साथ पढ़ने वाले विद्यार्थी मेरी टूटी – फूटी अंग्रेजी पर चिढ़ाते और शिक्षक भी कुछ ज्यादा पसंद नहीं करते थे मुझे हिंदीभाषी होने के कारण । एक बार एक समारोह था उसमे मुझे मंच पर जाकर अंग्रेजी में संभाषण करना था पर अंग्रेजी में पकड़ न होने के कारण जब सब हँसने लगे तो मुझसे रहा नहीं गया ।
मंच पर मैंने कहा “आप सब इसलिए हँस रहे हैं कि मैं हिन्दीभाषी हूँ ,अंग्रेजी में कमजोर हूँ पर क्या मातृभाषा बोलना कोई उपहास का विषय है ?हम विदेशी भाषा में बातचीत कर खुदपर इतराते हैं पर इस सभा में कई ऐसे विद्यार्थी हैं जिन्हें अपनी मातृभाषा बोलना तो दूर समझ भी नहीं आती क्या यह एक शर्म की बात नहीं हम हिन्दुस्तानियों के लिए ? हर भाषा स्वयं में महान है सभी भाषाएँ आनी चाहिए और इसलिए मैं भी कोशिश कर रही हूँ अंग्रेजी सिखने की पर मातृभाषा भूलकर नहीं ।
शिकागो महासम्मेलन में जब स्वामी विवेकानंद गए थे तो उनका पहला सम्बोधन वहाँ मौजूद सभा को था ” मेरे भाइयों और बहनों ” उन्होंने विदेश में भी मातृभाषा का मान बढ़ाया पर हम हिंदुस्तानी अपने ही देश में अपनी मातृभाषा और मातृभाषी को मान क्यों नहीं दे सकते हैं ? , आपको शर्मिंदगी होगी पर मुझे गर्व है अपने हिन्दीभाषी होने पर ,यही है मेरा परिचय।”
और मंच तालियों से गूँज उठा जो मेरे लिए अविश्वसनीय था । आज जब वहीं शिक्षकगण , वहीं सहपाठी मेरी कहानियाँ ,कविताएँ पढ़ कहते हैं ” हिंदी तेरा परिचय ” । तो मैं कहती हूँ “क्यों नहीं !हिंदी मेरा अभिमान है ।”
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