इक मुलाकात

इक मुलाकात


बात एक रात की

बहकने लगते ख्यालात
महकने लगते ख्वाब
याद जब है आती
बात एक रात की।

पूरे चाँद की वो रात
हाथों में तेरे मेरा हाथ
नज़रों से नज़रें मिली
मुकम्मल हुई जिंदगी।

जाने कितनी थी बातें
साथ जीने की कसमें
वफ़ा निभाने के इरादे
कहाँ गए जाने वो वादे।

वो रात बस थी कहानी
अपना बना वो अजनबी
कुछ पलों के लिए ही सही
मुस्कराहट से हुई थी दोस्ती।

वक्त कहाँ रूकता है कभी
बीत गई वो रात ऐसे ही
छोड़ गई पीछे तन्हाई
जग हंसाई और रूसवाई।

अब जो मिल गये फिर कहीं
तो देखेंगे नहीं मुड़ के भी
तुम मेरे हो कर भी मेरे नहीं
हम बिन तेरे भी रहे बस तेरे ही।

अंजान राही किस्मत से मिले
लकीरों में थी हिज़्र जुदा हुए
विसाले यार के बिन रहने लगे
अश्क दास्तां कहने लग गये।

काफ़िर जा तेरा दग़ा भुला दिया
दिल हमेशा देगा तुझे बस दुआ
तूने हमें दर्द दिया ,बस दर्द
हमने अपना हर इक हर्फ
तेरे नाम किया बस तेरे नाम।

नहीं भुलेंगे वो रात वो बात
तेरी बाँहो का आगोश
तेरा एहसास।

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