खुशियों के दीपक जगमगाएं दिवाली बनाएं

अवसाद के तिमिर को खुशियों के दीप माला से आओ इस दिवाली जगमगाएं
आंखों के पानी को, उसके होठों की मुस्कान बनाएं विघ्नहर्ता की कर आराधना हर विघ्न को हरने की करें प्रार्थना ,
खुशियों के दीपक की श्रंखला से इस दिवाली को आओ मिलकर जगमगाएं
व्याप्त अमावस्या के अंधकार को,
प्रेम ज्योति प्रज्वलित कर टिमटिमाते हुए प्रकाश से नहलाएं।
वैश्विक महामारी के गर्त में जो खो गए हैं अपने ,
याद में उनकी एक श्रद्धा दीपक जलाएं,
उनकी याद की बाती को, नम आंखों की बूंदों में भीगा,
आओ !एक स्मरण दीपक उन्हें समर्पित कर जाएं,
हैं जहा भी वह कायनात में,
परम शांति वह पूजनीय आत्माएं पाएं,
आओ मिलकर खुशियों के दीपक की एक श्रंखला जगमगाएं,
ओढनी बिछा कर गोद में शिशु को सुला कर,
सड़क किनारे,
रोशनी पात्र बेचती उसकी भी ,
आओ यह दिवाली यादगार बनाएं
परेकर तोल भाव के तराजू को
खरीद कर खुशियों के दीपक अपने,
उसकी दिवाली भी रोशन कराएं,
आओ मिलकर खुशियों के दीपक हर घर में जगमगाएं।
झुर्रियों से भरे चेहरे जो काट रहे हैं एकांतवास घर में ही अपने,
खुशियों के दीपक से एकांतवास के उनके अंधेरे मिटाएं,
कंपकंपाते हाथों से खुशियों के दीपक अपने घर आंगन में प्रज्वलित कर,
आशीष उपहार में पाएं।
आओ !इस दिवाली मिलकर सब खुशियों के दीपक से यह जहां जगमगाएं।
छोड़कर द्वेष- अभिमान -स्वाभिमान का अंधकार,
कर फिर से परिभाषित इंसानियत का पाठ,
मिलकर उत्साह से बनाएं दिवाली का त्यौहार।
सुख -समृद्धि -आरोग्य का कर आव्हान ,
आओ मिलकर खुशियों के दीपक से
इस अंधकार रात को टिम- टिमाता हुआ सवेरा बनाएं,
आओ सब मिलकर खुशियों की दीपमाला से संपूर्ण जहां जगमगाएं।
- दीपिका राज सोलंकी,
- आगरा उत्तर प्रदेश
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