किरण बेदी - पहली महिला पुलिस अफसर

किरण बेदी एक दमदार भारतीय नारी!
सुंदर सा चेहरा गोल बिंदी मांग में सिंदूर हाथों में चूड़ियां लगात सकुचाती साड़ी पहनी हुई एक महिला हां भारतीय नारी का नाम लेते ही यही तो छवि बनती है हर किसी के मन में !
9 जून 1949 को पंजाब प्रांत के अमृतसर में जन्मे किरण बेदी का मूल नाम किरण पेशावरिया है।
उस समय जब हमारा देश बस थोड़े ही सालों पहले आजाद हुआ था तब भी भारतीय नारी को इतनी आजादी नहीं थी कि वह अपने हिसाब से जी सकें सोचे और पुलिस महकमे में एक उच्च पद के बारे में सोच सके।
ऐसी में किरण बेदी जैसी महिलाएं जो ना सिर्फ अपनी जगह प्रांत का ही बल्कि पूरे समाज के सोचने का नजरिया बदल देती हैं। किरण बेदी भारत की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर थी।
किरण बेदी के कार्यकाल की शुरुआत पुलिस महकमे से नहीं हुई बल्कि वह अपनी शिक्षा पूरी करने के 2 साल तक 1970 में खालसा कॉलेज अमृतसर में राजनीति शास्त्र के लेक्चरर के रूप में बिताया ।
इसके बाद इन्होंने सिविल सर्विसेज की परीक्षा देकर 1972 में पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनी उस समय में ऑफिसर बन के पुलिस जैसे महकमे में इन्होंने लड़कियों के लिए भी एक उम्मीद जगा दी और लड़कियों में भी यह हौसला जगह दिया कि वह जो चाहे और जहां चाहे अपना स्थान बना सकती हैं किरण बेदी सिर्फ ऑफिसर ही नहीं बनी बल्कि उन्होंने यहां पर अनेक तरह के सुधार भी किए इन्होंने ट्रैफिक पुलिस मैं भी अपनी सेवाएं दी कुछ समय यह तिहाड़ जैसे बड़े और जाने-माने जेल के जेलर के रूप में भी कार्य किया वहां उन्होंने कैदियों के मनोदशा और व्यक्तिगत सुधार में भी अनेक कार्य किए।
किरण बेदी संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला पुलिस शांति साहब का सलाहकार बनी जिसके लिए उन्हें अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया किरण बेदी को मैग्सेस पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित और नारी स्वास्थ्य और कल्याण के लिए कार्यों में संलग्न किरण बेदी जी ने स्वेच्छा से पुलिस महकमे से सेवानिवृत्ति ली और समाज के उत्थान के कार्यों में लगी रही आज भी यह भारत की पांडुचेरी में राज्यपाल का कार्यभार संभाल रहे हैं इनकी तारीफ के लिए जितने भी शब्द हैं वह कम पड़ते हैं क्योंकि यह सिर्फ हमारी लड़कियों के लिए ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी एक आदर्श है जो कहती हैं कि अगर इच्छा हो तो शिक्षक से पुलिस और न जाने कितने उन्नत कार्यों की तरफ जाया जा सकता है सलाम है देश की ऐसी उच्च नारियों को जो बेटा और बेटी का भेद मिटा देती हैं जिन्हें देखकर मन से स्वतह ही यह आवाज निकलती है कि "म्हारी छोरियां छोरों से कम को नहीं"
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