कुछ तो ऐसा अच्छा कर जाओ

कुछ तो ऐसा अच्छा कर जाओ
प्रिय 2020
आशा करती हूँ सबको हैरान परेशान करके तुम खुश होगे।तुम्हारे आने की कितनी तैयारी की थी हम सबने।किसी ने केक काटा तो किसी ने मंदिर जाकर प्रार्थना की थी।मैंने तो जाने कितने सपने सजाए थे? इस साल ये करूँगी..वो करूँगी।सभी रिश्तेदारों से मिलूँगी।तीर्थ स्थलों की यात्रा करूँगी।पर तुमने तो सारे सपनों पर जैसे पानी फेर दिया।कहीं जाना तो दूर,घर से निकलना ही बंद करवा दिया।तुम अपने साथ-साथ वैश्विक महामारी कोरोना को भी लेकर आ गए। जिसने हम सबके जीवन में हाहाकार मचा दिया।
कोई आर्थिक रूप से तो कोई शारीरिक रूप से व्यथित हुआ।कोई बसा बसाया घर छोड़ने को आतुर हुआ,तो कोई घर पर रहने को मजबूर हुआ।हर चेहरे पर परेशानी थी,चाहे वो अपने को लेकर हो या फिर अपनों को लेकर।ऐसे दौर की कल्पना शायद सपने में भी किसी ने नहीं की थी।
लॉकडाउन के समय में ना जाने कितने वृद्ध माता-पिता अपने बच्चों से मिले बिना ही इस दुनिया से कूच कर गए।कितने लोग अपने प्रिय जनों की एक झलक पाने को तरस गए।कितने लोग दूसरों की जान बचाते बचाते,अपनी जान गँवा बैठे।11महिने गुजर जाने के बाद भी कोरोना को लेकर असमंजस की स्थिती बनी हुई।ज्योतिष,वैज्ञानिक और डॉक्टर्स सभी इस बीमारी के आगे बौने पड़ गए।
घर से ना निकल पाने के कारण मेरा मन उदास वा बैचैन रहता था।लेकिन ईश्वर और लेखन से जुड़े रहने के कारण कहीं ना कहीं मैं परिस्थितियों से जल्द ही ऊबर कर बाहर आ गई।
इतना सब होने के बावजूद भी मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करना चाहूँगी... क्योंकि तुम्हारी वजह से.. सबने सीमित साधनों में रहना सीखा लिया है।छोटी मोटी बीमारी में डॉक्टर के पास भागना,घर के कामकाज के लिए दूसरों पर निर्भर रहना,साग सब्जियां बिना धोए फ्रिज में रखना,बचा खाना फेंक देना,बाहर का खाना जैसी बुरी आदतें हमारी सहज ही छूटती चली गईं।
घर भी अब घर लगने लगा वरना तो रैन बसेरा सा बन गया था ।सुबह जल्दी-जल्दी सब काम किया और निकल गए सब काम पर और बस शाम को खाना बनाया,खाया और सो गए। घर के लोगों के साथ संप्रेषण हो ही नहीं पाता था ।जो होता था बस एक औपचारिकता थी पर इस दौरान परिवार को साथ रहने का,समझने का अवसर मिला।विभिन्न धार्मिक और ऐतिहासिक धारावाहिक जो हम देखने लगे तो बच्चों की भी रुचि उसमें बनी और संस्कृति में आस्था भी पुष्ट होने लगी। अन्यथा तो पब्लिक स्कूल का पाठ्यक्रम और तौर-तरीके ही हावी थे।
एक अंजान भय और विवेक ने लोगों में मदद करने का जज्बा भी विकसित किया।बहुत से समाज सेवी संगठनों को अनुदान कर यह प्रयास भी हुआ कि कोई मजदूर भूखा ना रहे।
कल कारखाने और यातायात के बंद होने से ना तो शौर था और ना ही प्रदूषण... वातावरण पूर्ण रूप से शुद्ध लगा। 
अंत में मैं तुमसे यही कहना चाहूँगी,कि जाते जाते कुछ तो ऐसा अच्छा कर जाओ,जिस एक कारण की वजह से हम सब तुम्हें पसंद करें।
कमलेश आहूजा

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