लाॅक डाउन का बच्चों की मानसिकता पर गहरा असर

महामारी और लाॅक डाउन ने जहाँ बड़ों की हालत खस्ता कर दी वहाँ बच्चों की मानसिकता और सामान्य जीवन पर भी असर किया है। दुनियाभर में चल रहे लॉकडाउन का असर सिर्फ आर्थिक नुकसान तक सीमित नहीं है, नांहि बड़ों की ज़िंदगी पर, कई रिसर्च में खुलासा हो चुका है कि लॉकडाउन की वजह से बड़ों से लेकर बच्चों तक की मेंटल हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
घरेलू हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी की खबरें दुनिया के लगभग हर देश से सामने आई हैं। लॉकडाउन बच्चों पर पूरी जिंदगी के लिए बुरा प्रभाव छोड़ सकता है। कुछ पैरेंट्स ने खुलासा किया है कि बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर लॉकडाउन का बुरा असर हुआ है। गली मोहल्ले और पार्क में खेलने वाले बच्चों को घर की चारदिवारी में अब घुटन महसूस होती है। न बाहर खेलना न दोस्तों से मिलना। और फिर स्कूल बंद होने से बच्चों की फिजिकल हेल्थ और फूड सिक्योरिटी पर भी बुरा असर पड़ा है। स्कूल किसी बच्चे के जीवन में पहले 8 हजार दिनों में पोषण और स्वास्थ्य निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
महामारी की शुरुआत के बाद से, 50 देशों के लगभग 370 मिलियन बच्चों को स्कूल का भोजन नहीं मिला है। दुनिया भर के बच्चों द्वारा स्कूल में मिलने वाली 10 में से 4 मील छूट गई हैं, जबकि कुछ देशों में यह संख्या बढ़कर 10 में से 9 हो गई है। भारत में दुनिया का सबसे बड़ा मुफ्त स्कूल मील प्रोग्राम चलता है और ऐसे में भारत में लॉकडाउन के समय में कुपोषण का खतरा भी बढ़ा है।
और सबसे बड़ा नुकसान पढ़ाई का हो रहा है। घर पर बैठे पढ़ना और घर से ही परीक्षा देना उतना असरकारक नहीं होता जो स्कूल के वातावरण से मिलता है।साथ ही लॉकडाउन के दौरान एक खतरा ये भी है घर बैठे बच्चें इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। इस दौरान उन्हें अनुचित सामग्री देखने को मिल सकती है या फिर ऑनलाइन हैरेसमेंट भी हो सकता है।
लॉकडाउन की वजह से बंद हुई आर्थिक गतिविधियों की वजह से दुनियाभर में करीब 4 से 6 करोड़ बच्चे गरीबी की चपेट में आ जाएंगे। इस संकट से पहले दुनियाभर में करीब 40 करोड़ बच्चे बहुत ज्यादा गरीबी में जी रहे है। इस संकट से उबरने का अभी कोई हल भी नहीं दिखता क्योंकि लॉकडाउन को कोरोना के खात्मे का प्रमुख उपाय है।
लॉकडाउन की वजह से पैरेंट्स की नौकरी छूटने का असर भी बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर हो रहा है। लॉकडाउन की वजह से इन्फैंट मॉरटैलिटी रेट में भी तेजी आएगी। बीते सालों में किए गए प्रयास शायद इस साल बर्बाद हो जाएंगे। महामारी और लाॅक डाउन के बारे में सही समझ देकर परिजनों को बच्चों को मानसिक तौर पर मजबूत करना होगा। बच्चें देश का भविष्य है।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु
What's Your Reaction?






