लीक से हटकर #महिला दिवस विशेष

वाक्या उन दिनों चर्चा का केंद्र बिंदु था। बात 1971 की है। अपने होम टाउन में स्टेशन से उत्तर रिक्शा में घर जाते अचानक एक महिला को देखा जो बजाज स्कूटर चला रही थी। करीबन 6 फुट ऊंची, उसी मुताबिक शरीर और रंग सांवला। हम सब के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा एक महिला को स्कूटर चलाते देख। उसके आत्मविश्वास भरे चेहरे को देखा मैंने।
पता चला उनका नाम चित्रा है। जो फिशरी डिपार्टमेंट में काम करती थी।चित्रा के पिता स्टेट बैंक में मैनेजर थे। दो भाइयों की लाडली बहन। भाइयों के ही खेल खेलती। युवा होती बेटी पर मां ने कभी अंकुश नहीं लगाया।
अड़ोस पड़ोस चित्रा के पहनावे और खेल को देख अनेक बातें करते। कुछ चित्रा की मां को समझाने की कोशिश करते। बेटी को हद में रखो, छूट ना दो, वरना बाद में विवाह में मुश्किलें आएंगी।
मां हर बात सुनती पर करती वही जो चित्रा चाहती थी। भाई के साथ ही बास्केटबॉल खेलती। लड़कों की टीम में वह एकमात्र लड़की थी।
कुछ ईर्ष्या ग्रस्त थे, कुछ कुंठित तो कुछ नए परिवर्तन को स्वीकार कर रहे थे।
पूरे शहर में उन दिनों वह अकेली लड़की जो बास्केटबॉल खेला करती थी ।स्पोर्ट्स कोटा में उसका चयन फिशरी डिपार्टमेंट में हो गया। भाई का चयन पोस्टल में ।आने जाने के लिए वह स्कूटर सीखने लगी। घर में स्कूटर मौजूद था उसने वही सीखना चाहा।
आश्चर्य और आकर्षण का केंद्र बिंदु बनी चित्रा। उन दिनों पूरे जिले की वह पहली महिला थी जो स्कूटर चलाती थी।
एक महिला होने के नाते महिला पर जो भी बंदिशे थी उसने कभी उन्हें नहीं माना। जागरूकता एक परिवर्तन लाने में चित्रा ही नहीं उसकी मां का भी बड़ा योगदान था। हर कदम चित्रा का साथ दिया।
टूर ,बाहर कहीं रात को रुकना पड़े सब कुछ सहजता से स्वीकारा। लोगों ने चित्रा के चरित्र पर लांछन लगाए। भला बुरा कहा, यह भी कहा कि उसकी वजह से उनके घर की लड़कियां बिगड़ रही हैं ।
अपनी धुन की पक्की चित्रा पर किसी बात का असर ना दिखता हो पर आंतरिक रूप से कभी-कभी मर्म आहत होती थी। उसका कहना था ,"किसी के बनाए रास्ते पर मैं क्यों चलू? मुझे अपना रास्ता और अपनी मंजिल खुद चुननी और तय करनी है। मैं चाहती हूं मैं लोगों की प्रेरणा स्रोत बनूं। लीक से हटकर काम करूं "।उसने अपने रास्ते आने वाले हर रुकावट को तोड़ डाला।
उसकी वजह से ही लड़कियां, खेलकूद नौकरी में उन दिनों आगे बढ़ पाई थी। आज भले खेल ,गाड़ी चलाना बहुत ही आम लगता हो पर उन दिनों महिलाओं को अपने लिए पुरुष प्रधान समाज में जगह बनाना टेढ़ी खीर थी।
जिन्होंने बंदिशें और रुकावट तोड़ी वही मील के पत्थर साबित हुए। चित्रा भी उन्हें में से एक थी।
#BREAK THE BIAS#
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