माँ की स्पेशल बनारसी साड़ी !!

माँ की स्पेशल बनारसी साड़ी !!

बहु अपने मायके ख़बर कर दी है ना की बच्चे के मुंडन संस्कार में मायके की साड़ी ही पहनते है "|

"जी माँजी ! मैं आज फ़ोन कर दूंगी "|

"अब ये बताने की जरुरत तो नहीं की साड़ी हमारे घर के स्टैण्डर्ड की होनी चाहिये | सिल्क या बनारसी साड़ी ही ले कर आये | कोई सस्ती साड़ी नहीं चलेगी बड़े बड़े लोगो को इनविटेशन दिया गया है मुंडन संस्कार के लिये | आखिर हमारी भी कोई इज़्ज़त है समाज में "| ऑंखें दिखाती सासूमाँ ने मुझे साड़ी पे अच्छा खासा लेक्चर सुना दिया |

कमरे से जाती सासूमाँ को देख मेरे आंसू झलक उठे | अभी छः महीने भी तो नहीं हुए पापा को रिटायर हुए कोई पेंशन भी नहीं मिलती प्राइवेट नौकरी जो थी और दो छोटी बहनें है | जाने कितने खर्चे होते है | ऐसे में कैसे कह दू माँ को की मेरे ससुराल में सिल्क या बनारसी साड़ी ही लाना | कैसे कह दू माँ से की सिर्फ एक फंक्शन पे वे पांच दस हजार रुपय सिर्फ साड़ी में फुंक दे |

क्या कमी है मेरे ससुराल में इतना रईस परिवार है इनके लिये जो आम बात होती है वो मेरे घर पे सपनों में देखने वाली बात होती है | पापा तो सपनों में भी इस घर से रिश्ता जोड़ने को सोच नहीं सकते थे वो तो वरुण ने मुझे देखते शादी की ज़िद ठान ली थी और मेरा रूप रंग ऐसा जो देख सासूमाँ ने भी हामी भर दी थी वर्ना कहाँ वरुण का परिवार और कहाँ मेरे परिवार |

कुछ सोच फ़ोन उठाया, " हेलो माँ प्रणाम ! कल आ रहे है ना आप सब टाइम से आना माँ ! बहुत दिल कर रहा है आप सब से मिलने का "|

"हां बेटा हम समय से आ जायेंगे" |

"माँ कल आते समय वो आपकी लाल जड़ी वाली बनारसी साड़ी है ना जो अपने अपनी शादी में पहनी थी वो लेती आना " |

"अरे तुझे उस साड़ी से क्या काम पड़ गया वो भी कल | कल तेरे पहनने के लिये हमने ली है ना सिफॉन की सुन्दर साड़ी और सुन महंगी भी है पुरे पंद्रह सौ की है "|

फुसफुसा कर माँ ने कहा तो मुस्कुरा उठी मैं मेरी भोली माँ कैसे बताऊ तुम्हें तुम्हारी बेटी की सासूमाँ को पंद्रह सौ की नहीं कम से कम पांच दस हजार की साड़ी चाहिये मुंडन के लिये |

"ठीक है माँ कल मिलते है साड़ी याद से लेती आना "|इतना कह मैंने फ़ोन रख दिया |

आज कई दिनों बाद जी हल्का सा लग रहा था | देखा तो मुन्ना राजा उठ कर खेल रहा था उसे झट गोदी में उठा लिया, " आपकी नानी आयेंगी नानू और मासी भी आप खेलोगे ना बेटा " और मुन्ना और मैं खिलखिला के हॅंस पड़े |

अगले दिन माँ पापा समय से पहले ही आ गये मुन्ने और मुझे मिलने का लोभ जो था खुब समझ रही थी मैं | लाओ माँ जल्दी से साड़ी मुझे दो देर हो रही है और जल्दी से माँ के हाथों से साड़ी ले ली मैंने और झट से तैयार हो गई |

लाल बनारसी साड़ी, मैचिंग चूड़िया, रानी हार कानो में सुन्दर झुमके, और बड़ा सा नथ | माँ देखी तो देखती रह गई तुरंत काजल का टीका कानो के पीछे लगा दिया |

"माँ ! ये क्या अब भी बच्ची ही समझा है मुझे "? हँसते हुए मैं माँ के गले लग गई |

"ये क्या बेटा तूने आज पहनने के लिये ये साड़ी मंगवाई थी लेकिन मैं तो नई साड़ी लायी हूँ " |

"माँ, मुझे तो आज यही साड़ी पहननी थी जानती हो क्यों "?

"क्यों बेटा "? आश्चर्य से माँ मेरा मुँह देखने लगी |

"मेरी भोली माँ आज इस साड़ी से मुझे दो दो माओं का प्यार मिला तुम्हारा और नानी माँ का तो हुई ना स्पेशल साड़ी मेरे लिये और आज के स्पेशल दिन के लिये इस साड़ी से अच्छी और कौन सी साड़ी होगी बताओं " |

गीली आँखों से माँ ने गले लगा लिये शब्द जैसे उनके गले में रह गए लेकिन ऑंखें सब कुछ बयां कर गई |

तभी सासूमाँ कमरे में आ गई और बनारसी साड़ी में मुझे तैयार देख मुस्कुरा उठी, "बहुत सुन्दर लग रही हो बहु चलो जल्दी पंडित जी बुला रहे है | आप भी चलिये समधन जी "|

सासूमाँ को मनुहार करते अपनी माँ को अपने साथ ले जाते देख दिल ख़ुशी से झूम उठा | मेरी थोड़ी समझदारी से आज मैंने अपनी सासूमाँ की बातों का मान तो रखा ही
अपने मायके के सम्मान को भी बचा लिया |

आज माँ की ये बनारसी साड़ी मेरे लिये सिर्फ एक साड़ी नहीं रह गई थी आज ये साड़ी मेरी माँ का आशीर्वाद और मेरे मायके का मान बन चूकी थी |

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