मैं और मेरी साइकिल

सुनो सुनाती हूँ तुम्हें साइकिल की कहानी,
बड़ अजीब हैं साथ मेरे उसकी कहानी।
वादा कीजिये हंसना मत तुम दास्ताँ सुन मेरी,
साइकिल के साथ थी मेरी भी अजीब यारी।
कालेज जाने के लिये पापा ने मुझे साइकिल दिलाई,
पर.... पहले किराये की साइकिल ला चलना सिखाई।
पापा पीछे पीछे भागते मेरी साइकिल को पकड़ने,
जैसे ही छोड़त हाथ मेरे तो पसीने छूट जाते।
जैसे तैसे साइकिल सीखी और कालेज जाने लगें,
भीड़ आते ही उतर जाते और पैदल चलने लगते।
कारण जब आपको पता चलेगा तो हंसी आ जायेगी,
घर से बैठाते थे पर.... कहीं रूके तो ... कैसे आगे चलाते।
कोई मिल जाता तो कह देते कृपया मुझे बैठा दीजिए,
वो साइकिल पकड़ते और हम गंतव्य पर पहुंच जाते।
अजीब डर था मन चढ़ाव तो आसानी से चढ लेते,
ढलान आता तो साइकिल से हम उत्तर जाते।
आज भी याद करती हूँ वो पल तो हंसी आ जाती हैं,
कैसी पगली थी ढंग से साइकिल भी नहीं चला पाती थी।
साइकिल से उतर जाने पर कितनी बार साइकिल को,
पैदल पैदल घसीट कर ले जाती पर .....क्या कहूँ।
बस अब इस साइकिल की दास्ताँ को यही विराम देती हूँ,
होता है बचपन नादाँ तो ऐसी गलतियाँ ... हो जाती हैं। ।
#world cycle day
डाॅ राजमती पोखरना सुराना भीलवाड़ा राजस्थान
What's Your Reaction?






