मेरी झोली तुम्हे ही भरना है...

एक चिट्ठी छुपाकर रखी है
मन के एक गलियारे में
तुम इजाज़त दो तो मैं ही
डाकिया बन, दर तुम्हारे आ जाऊँ
वो दर जो कभी मेरा भी था
ना जाने क्यूँ मुझसे ही घबराया है
क्यूँ हर बार ही तुम्हे बोझ लगती हूँ
ये सोच कर ही मन भर आया है
माँ, वो दर तुम्हारा है
तुम मेरी भी तो माँ हो
कभी आँगन में खेली थी तुम्हारे
फ़िर अब क्यों तुम मुझसे रूसवा हो
जानती हूँ कि मैं असल फ़सल नहीं थी
बस खरपतवार सी जगह पायी थी
गोद में आते ही तुम्हारे परायाधन कहलाई थी
माँ तुम्हारा मन तो उसी दिन से पक्का था
सूख रहा था ममता का गांव
मैं बेटी हूँ ये सोच के ही भौचक्का था
हाँ, आज मैं खुद माँ हूँ
पर दर्द में नाम तुम्हारा ही आता है
तुम्हारे स्पर्श को पाने के लिये
हर पल मन व्याकुल होता जाता है
वसियतें भले ही तुम भाई के नाम करो
पर कुछ पल इस बेटी के घर भी विश्राम करो
मुझे मोह तुम्हारे सहवास का है
ये प्रश्न उर दर से इस दर के प्रवास का है
माँ ये प्रवास तुम्हे ही करना है
ममता की सौगातों से
मेरी झोली तुम्हे ही भरना है
मेरी झोली तुम्हे ही भरना है
#चिट्ठी
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