मेरे मर्म तक न पहुंचे भारी शब्दों और साहित्य का बोझ लिया हुआ लेखन

मैं पिंक कॉमरेड इंग्लिश के मंच पर जयादा सक्रिय हूँ लेकिन इस लेख को हिंदी में लिखना सिर्फ लाजिमी नहीं एक जरुरत भी थी | हिंदी साहित्य के स्वघोषित ओछे ठेकेदारों की हरकतें देखने का दुर्भाग्य इस दोपहर को प्राप्त हुआ | ठेकेदार साहित्य की गुढ़वत्ता को बताते हुए आम लेखकों की लेखनी , विषयों की समझ और शैली पर थूक रहे थे | हिंदी के बड़े लेखको का हवाला देते हुए , बकैती की खुले आम नुमाइश हुई , ठीक वैसे जैसे बेईमानी के सागर में डूबी पुरानी पीड़ी नयी पीड़ी को नैतिकता के पाठ पढ़ाती है | हिंदी साहित्य के स्वघोषित ओछे ठेकेदारों ने मुझे आज एक खास और बड़ा सबक सिखाया जो मैं आपसे साझा करना चाहती हूँ |
अंग्रेजी साहित्य के साथ साथ भारत में साहित्य, किताबें और उनकी लोकप्रियता लगभग दम तोड़ चुकी था | ऐसे समय में लेखक चेतन भगत जो पेशे और शिक्षा से साहित्य के आस पास भी नहीं था , लोकप्रियता के चरम पर पहुंच जाता है | भगत न तो प्रेमचंद की तरह निराशावादी थे और न ही जॉर्ज ओरवेल के माफिक बड़े बड़े शब्दों के धनी | बाकी लेखकों की तरह न चेतन ने सिस्टम को गाली दी और न ही सरकार द्वारा उनके साहित्य को प्रमाणित करने वाले पुरस्कार दिए गए | फिर भी सोशल मीडिया के समय में , एक इंजीनियर और मैनेजमेंट पेशेवर की कहानियां हमें पसंद आई | क्यों ? क्या कारण है इस के पीछे ?
सलीका , सीधा और सरल तरीका , अंग्रेजी भाषा है तो क्या हुआ , सीधा और सरल लेखन | भारी शब्दों और साहित्य का बोझ न लिया हुआ लेखन | बस कहानी बताता एक लेखन | आपके मन को छूता लेखन | मुझे आपके बड़े शब्दों और साहित्य से क्या लेना देना , जब वो मुझे भेद ही नहीं पाए | मेरे मर्म तक जो न पहुंच वो कितनी भी बड़ी कालजयी रचना हो , मेरे लिए वो एक रद्दी कागज से ज्यादा कुछ नहीं | मेरा साहित्य मेरी अपनी पसंद पर पूर्णत निर्भर हैं |
दिन रात तुम्हरे चिल्लाने से मेरी साहित्य की परिभाषा नहीं बदलती , चाहे तुम कितना भी गाला फाड़ो , दिन रात चिल्लाओ , हर गली मोहल्ले में चिल्लाओ | यदि किसी व्यक्ति विशेष की निंदा करते हुए उसकी समझ पर सवाल उठाने हैं , तो तुम्हरा शब्द "मूड " तुम्हें मुबारक , मेरा शब्द चुनाव होगा "मंद बुद्धि ", और हर बार साहित्य और शब्द , दोनों का चुनाव मेरा होगा |
तुम साहित्य की मौत का तमाशा काटो , मैं अपना साहित्य खुद ढूंढ लुंगी |
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