मोटी आमलेट खायेगी

" मोटी ( भईया हमेशा उसे मोटी कहकर बुलाते) क्या खायेगी आमलेट ,एग करी या एग भुजिया तुझे भूख बहुत लगती है ना" भईया के साथ मिलकर खूब ब्रैड बटर खाती ।भईया कुकिंग बहुत अच्छी करते थे जब भी सब भाई बहनों को (हम पांच बहनें और एक भाई है ,दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है अब भईया तीनों बहनों से बड़े हैं ) भूख लगती तो मां का मुंह नहीं ताकते झटपट आमलेट बना डालते ( किचन में बनाना अलाउड नहीं था इसलिए बाहर स्टोव पर बनाते)फिर सब भाई बहन मिलकर खाते। भईया दूध में ब्रैड भिगोकर रखते और मैं उसमें से चुराकर आधा चट कर जाती ।
वैसे तो मां चाट वगैरह सबकुछ घर पर बनाती रहती लेकिन जब मैं पढ़ाई के लिए बाहर निकली तो पापा मुझे खर्चे के रूपयों के साथ चाट खाने के लिए अलग से रूपए देते और कहते " बचाकर मत रखना जब मन हो तो चाट खा लेना "। जब पापा मुझे छोड़ने जाते तो बुआ( मकानमालिकन वो खाना भी बनाकर देती) से कहकर आते कि हमारी बिटिया के खाने-पीने का ध्यान रखना तभी उसका मन पढ़ने में लगेगा ।
मैं जब भी कालेज से निकलती तो अपनी बैस्ट फ्रैंड के साथ पांच रुपए के गोलगप्पे जरूर खाती और कहीं कड़ाही से निकलते गरमा-गरम समोसे !!!अहहा !!! वो तो किसी हालत में नहीं छोड़ सकती ।घर में ये बात सभी लोग जानते थे ।मैगी की तो बात ही मत पूछो!!! मेरा बस चलता तो मैं रोज मैगी खाती।
मां डांटती थी कि "इतना चटोरापन अच्छा नहीं पराए घर जाना है" तब पापा का जवाब होता" तभी तो कह रहे हैं श्रीमती जी हमारी बेटी को यहां खापी लेने दो पता नहीं पराए घर में उसे खाने को मिले या ना मिले, कोई उसके खाने का ध्यान रखें या ना रखे "तो मां चुप हो जाती ।
मेरे कालेज का एक किस्सा है याद करके ही हंसी आ जाती है । मेरे कालेज में जाड़ों में एक भईया मूंगफली बेचने आते थे उसके साथ वो जो धनिए का नमक देते थे वो बहुत स्वादिष्ट होता था ।हम सहेलियां रोज बारी बारी से मूंगफली खरीदने के लिए दो रूपये लेकर आती और लंच ब्रेक में सब मिलकर खाते ,सब बातों में लग जाती तो उनका मूंगफली खाना रूक जाता लेकिन मैं बातें करते करते भी खाती जाती और जबतक उनलोगों की बातें खत्म होती मूंगफलियां भी सफाचट हो चुकी होती , मेरी बैस्ट फ्रैंड प्रीती मेरे ऊपर नाराज होकर बोलती " कीर्ति की बच्ची तू सब मूंगफलियां खा गई , कितनी तेज स्पीड है तेरी और सब मिलकर ठहाका मारकर हंसते।
दोस्तों देखा आपने यादों की गर्माहट कितनी मजबूत होती है जब यादें मन के दरवाजे पर दस्तक देती हैं तो यादों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं लेता।बेहद मजेदार बचपन और स्कूल कालेज जिगरी दोस्तों की यादें .
आपकी दोस्त
कीर्ति मेहरोत्रा
धन्यवाद
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