नवयुग का निर्माण करें

बिछड़ रही है सभ्यताएं व्यवहार, वाणी, वर्तन से, दरियादिली तंग हो चली सोच की दिशा बदल गई, कट्टरवाद की शूली चढ़कर धर्म की धुरी अटक गई...
हल्की सी बची हंसी से झूठ की परत हटाकर क्यूँ न सत्य का शृंगार भरे, ज़हर उगलते एहसास मिटाकर नई समझ की शुरुआत करें...
पुराने नाटक पर पर्दा ड़ालकर नये किरदार का निर्माण करें, कलयुग की कब्र पर मिट्टी बिछाकर सतयुग की ओर प्रस्थान करें...
आसमान रचे अपनेपन का वैमनस्य का अग्निसंस्कार करें, मिटा दे खुद के भीतर का अंधियारा एक ऐसे सूर्य का आह्वान करें...
दूरियों की दीवार गिराकर प्रीत का पावन सेतु रचे, बाँहें फैलाए गले लगाएं युद्ध चाहे कोई भी हो विराम का आगाज़ करें..
स्वार्थ का निवाला गटक कर चलो ज़ुर्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं, गढ़े कोई इतिहास ऐसा जो विचारों का पुनरुद्धार करें...
लालच की चद्दर ओढ़ ली है हर मन के परिवेशों ने, उखाड़ फेंके नफ़रत को उपहार में इत्र की शीशी दें फिर नवयुग का निर्माण करें..
भावना ठाकर \"भावु\" बेंगलोर
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