नया कंबल #सर्दियों की गरमाहट

'चिराग आ गया बेटा ! जरा मेरी बात तो सुनो' जैसे ही दरवाजे पर खटका हुआ तो अम्माँ ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखते हुए बोला।
"अभी काम से आए हैं। पाँच मिनट साँस तो ले लेने दो अम्माँ | फिर आकर बैठ जाएंगे तुम्हारे पास| ' बहू नेहा गुस्से से बोली|
पूरी उम्र रौब से रहने वाली अम्माँ बहू की बात सुनकर एकदम चुपचाप आँखे नीचे करके चारपाई पर पड़ी रही |
सच वृद्धावस्था में जब शरीर काम करना छोड़ देता है तो बेटे बहू से तो डर कर ही रहना पड़ता है|
चाय पानी पीकर चिराग अम्माँ के पास बाहर आंगन में आकर बैठ गया|
'कैसी हो अम्माँ?' चिराग ने पूछा |
सारा दिन अम्माँ सिर्फ इसी पल का तो इंतजार करती थी कि कब चिराग दफ्तर से आएगा और पाँच मिनट अपनी बूढ़ी माँ के पास बैठकर उसका हाल चाल पूछेगा |
अम्माँ ने लेटे-लेटे ही जवाब दिया, 'बेटा दिसंबर का महीना है| ठंड बढ़ती ही जा रही है | पिछले साल भी कहा था कि आंगन में मुझे बहुत ठंड लगती है| यहाँ पर कोई कच्चा कमरा डलवा दें और किवाड़ लगवा दे, जिससे कि सर्दी में कुछ कम ठंड लगा करें | अब तो घुटने भी ठंड के मारे जवाब दे गए हैं|
चिराग ने धीमी आवाज में कहा, 'अम्माँ
तुम तो जानती ही हो कि आजकल काम धंधे की क्या हालत है | तुमसे तो कुछ छुपा हुआ है नहीं हुआ | अगले साल तक जरूर यहाँ पर एक दरवाजा लगवा कर एक कच्चा कमरा बनवा दूंगा, बस इन सर्दियों किसी तरह गुजार लो|'
अम्माँ भी बेटे की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोली, 'हाँ बेटा! यह तो मैं जानती हूँ | चल और कुछ नहीं तो कोई मोटा कंबल ला कर मुझे दे दे, इस पुराने घिसे हुए कंबल में रात को बहुत सर्दी लगती है|" अम्माँ बोली|
'हाँ! मैं अभी तुम्हें अंदर से नया मोटा कंबल ला देता हूँ 'कहकर चिराग अंदर चला गया |
`यह क्या नया कंबल अम्माँ को देने लगे हो' नेहा ने चिराग के हाथ से कंबल खींचते हुए कहा|
`याद है ना ये कंबल मेरे मायके से आया था और इतना बढ़िया कंबल यह मैं अम्माँ
को नहीं देने दूँगी | एक-दो दिन रुक जाओ मैं कोई मोटी पुरानी चादर निकालकर अम्माँ को दे दूँगी | जब कोई मेहमान आए तो एक साफ सुथरा नया कंबल तो होना ही चाहिए ना |' कहते हुए नेहा ने कंबल अलमारी में वापस रख दिया |
नेहा की बात सुनकर चिराग भी चुपचाप एक तरफ बैठ गया |
बाहर चारपाई पर लेटी अम्माँ बहू और बेटे की का पूरा वार्तालाप सुन रही थी |आज अम्माँ की आँखों में आँसू थे, जिस बेटे के लिए जन्म के लिए उसने ना जाने कितनी ही दरगाह में चादरें डाली थी और आज वहीं माँ खुद ही सर्दी में एक कंबल को तरस रही थी |
आज अम्माँ को बहू की जगह दुःख अपने बेटे पर था जिस ने बहू की बात बिना काटे चुपचाप उसके निर्णय को मान लिया था |
अगली सुबह पूरा मोहल्ला अम्माँ के दरवाजे खड़ा था | चिराग की आँखों
में पश्चाताप के आँसू थे और उधर नेहा सभी पड़ोसियों को बताने में लगी थी,
'अम्माँ की तो उम्र हो ही गई थी | आज नहीं तो कल अम्माँ ने जाना ही था |'
भरी सर्दी की सुबह अम्माँ ने आँखे ही ना खोली थी |
चिराग ही जानता था कि अम्माँ की मौत
उम्र की वजह से नहीं सर्दियों और रिश्तो की गर्माहट के अभाव के कारण हुई है |
आज अम्मा को गए पूरे चार साल हो गए हैं| हर वर्ष चिराग सर्दियों में ना जाने कितने कंबल गरीबों को दान करता है परंतु फिर भी उसके हृदय से पश्चाताप खत्म नहीं होता|
दोस्तों अक्सर हम अपने घर के बुजुर्गों की जरूरतों को नजरअंदाज कर देते हैं और जब समय गुजर जाता है और उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद ना जाने उनके नाम पर कितने दान पुण्य और श्राद्ध करते हैं | जब की आवश्यकता होती है अपने घर के बुजुर्गों के उनके जीते जी उनके मान-सम्मान और जरुरतों का ध्यान रखने की|
हमारे घरों में आकार सर्दियों के कपड़े फालतू पड़े रहते हैं, जिनका वर्षों तक हम नहीं इस्तेमाल नहीं करते और दूसरी और हजारों लोग हर बरस सड़क पर सर्दी के कारण दम तोड़ते हैं|
क्यों ना इन सर्दियों में हम अपने घर के फालतू कपड़ों को दान करके किसी गरीब के जीवन को नष्ट होने से बचाने की कोशिश करें|
उम्मीद करती हूं कि हर बार की तरह यह स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित कहानी आपको पसंद आएगी|
#दिल से दिल तक # पूजा अरोड़ा
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